SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८२) लोंका, लवजी ढूंढकका विचार. ___अथवा देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण महाराजने, जैसे सर्व मुनियों का मुखाग्रपाठका संग्रहकरके, शास्त्रोंका उद्धार कियाथा, तैसें यहलोकेने शास्त्रोंका उद्धार कियाथा ? ३ ॥ किसविधिसे शास्त्रोका उद्धार किया दिखाती है ? || न तो प्रथम प्रकार बनसकता है क्योंकि, जैन सिद्धांतको, कोई समुद्र में लेके नही गयाथा, जो प्रथम प्रकार बनसके ? और न तो तिसरा प्रकारभी बनसकता है, क्योंकि-लोका तो केवल गृहस्थही था, तो पिछे साधुके मुखाग्रका पाठका-संग्रहही कि सतरां करनेवालाहो सकता है ? . हां दूसरा जो, वेद, पुराण, कुरान, आदि बातोंका, संग्रह करके शास्त्रोंका उद्धार किया होगा तो, ते बात तो तूंही जानती होगी! हमको तो मालूमही नहीं है ।। ॥फिर लिखती है कि-न तो नया मत निकाला है, न कोई नया कल्पित ग्रंथ बनाया है । जब लोंकेने, नयामत नहीं निका. ला है तो, किस गुरुका पाउको पकड कर चलाथा ? सो तो दिखानाथा ? । इस वातमेभी तूं क्या दिखा सकेगी ? सो तो (लों. का) कोरा गृहस्थही था, और कोरा गृहस्थ होनेसे-उतना ज्ञान ही कहांथा, जो ग्रंथ बनासकें ! इस वास्ते यह तेरा लेख ही विचारशून्यपणेका है ॥ और जो आत्मारामजी महाराजने-जिन प्र. तिमाजीको उत्थापकका बीजरूप, लोंकेको हुये, साढाचारसो व. र्षका अंदाज लिखा है, सो सत्यही लिखा हुवा है । देख काठियावाड तरफसे, प्रसिद्ध हुयेला तेरा ढूंढक मत वृक्षमें । और देख जैनहितेछुपत्र वाला तेरा वाडीलाल ढूंढकनेभी सो पत्रिकाओ, गाम गाम भेजके, ढूंढक मतकी हकीकत मंगवाके, चोकसपणे " स्थानकवासी डिरेकटरी" बहार पाडी है उसमें, और तेरें ढूंढकोकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy