SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ air, लवजी ढूंढकका, विचार. (983) मैथुन वर्ज, कारणे करनेका निषेध नही है । उसमें तर्क करती है, कि, जूठ बोलना, चौरी करना, कच्चापानी पीना भी सिद्ध हो गया, धन्य निशीथभाष्य, धन्य आप || फिर. पृष्ट. १६१ से - पीतांवरियोंका - कल्पित नया मत निकला है, जिसको २५० वर्षका अनुमान हुवा है, कई पीढियें एलियारंग वस्त्र धारी रहे है, कई कत्थेरंग वस्त्र धारी रहे है, मन माना जो पंथ हुवा || फिर. पृष्ट. १६२ से- आत्मारामजी, पहिले सनातन ढूंढक मतका, श्वेतांवरी साबुथा, जब सूत्रोंक्त क्रिया ना सधाई, और रेल में चढनेको, दुशाले, घुस्से, ओढनेको, मोलदार औषधिायें की डन्त्रिif मंगाकर खालेनेको, माल असबाब रेलोमें मंगालेनेको, ढूंढकमत छोडके, गुजरात में जाके, रंगे वस्त्र धारे. फिर. पृष्ट. १६३ तक - यही बातमें गप्पदीपिकासमीरका प्रमा ण दिया है. फिर धनविजयकी पोथीका प्रमाणसे । और बूटे रायजीका प्रमाण देके, सर्व गुरुओंको असंयमी ठहराये है. समीक्षा - हे ढूंढनीजी लोकेने, पुराना शास्त्रोंका उद्धार किया है, ऐसा तूं कहती है, तो हमपुछते है कि- पुराना शास्त्रोंका उद्धार किसरीति से कियाथा ! क्या मच्छावतार धारणकर कुनजीने जैसें, समुद्रमेंसे वेदों को ढूंढलाके, उद्धार कियाथा वेशें लोंके - - शास्त्रोंका उद्धार कियाथा ? १ ॥ अथवा तेरीही ज्ञानदीपिका के लेख प्रमाण जैसे कि-ढूंढत २ ढूंढ लिया, सब वेद पुराण कुरानमें जोई । ज्यं दही मासे मखन ढूंढत, त्यूँ हम ढूंढियों का मत होई १ ॥ तैसें वेद, पुराण, कुरान, आदि बातोंका संग्रहकरके शास्त्रोंका उद्धार कियाथा ? २ || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy