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________________ (१९) नेत्रांजन प्रथम भाग अनुक्रमणिका. अनुक्रमणिका. विषय पृष्टः १ पूर्वाचार्योकृत तीर्थकरोंकी महा मंगलिक, भव्य मूर्तिकी स्तुतिरूप, मंगलाचरणके २ काव्यार्थ- १ २ ढूंढनीजीका-ग्रंथ, शास्त्ररूप-नहीं है, किंतु भव्यजनोंको शस्त्ररूपही है, इति ग्रंथ करनेका-प्रयोजन स्वरूप, काव्यार्थ३ वस्तुमें तीन प्रकारसें-(१) नामका निक्षेप, करनेरूप, पूर्वाचार्यकृत-लक्षण ज्ञापक आर्या, उनका अर्थ, और उनके तात्पर्यका स्वरूप४ पूर्वाचार्यकृत (२) स्थापना निक्षेप-लक्षण ज्ञापक आर्या, उनका अर्थ, और उनके तात्पर्यका स्वरूप५ पूर्वाचार्यकृत (३) द्रव्य निक्षेप लक्षण ज्ञापक आर्या, ' उनका अर्थ, और उनका तात्पर्यका स्वरूप- ५ ६ पूर्वाचार्यकृत (४) भाव निक्षेप लक्षण ज्ञापक आर्या, उनका अर्थ, और उनका तात्पर्यका स्वरूप- ६ ७ सामान्यपणे-सर्व वस्तुका चार निक्षेपमें, सूचनारूपे-सि द्धांतकी मूल गाथा, उनका अर्थ, और ढूंढनीजीकी समजमें-फरकका विचार सहित स्वरूप- ११ ८ ग्रंथ कर्ताकी तरफसें-प्रगट अर्थ स्वरूप, चार निक्षेपका लक्षणके--चार दुहे, अर्थ सहित • १४ ९ आवश्यक (१) नाम निक्षेप सूत्र पाठ, उनका अर्थ, और उनके तात्पर्यका स्वरूप-- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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