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(१५०) मूर्ति निषेधके-पाठी. छुडवायके, भूतादि पूजनेका कलंक भी चढाती है, और उन श्रावकोंके पर-मिथ्यात्वपणेका, आरोप रखती है, तो न जाने क्या इस ढूंढनीके-अंगमें, कोइ महामिथ्यात्व भूतका प्रवेश हुवा है ? अथवा भूत, यक्ष, पितरादिकोंमेसें-किसीने, प्रवेश किया है ? कारण यह है कि-जनके मूल सूत्रोंमें-जिनमूर्ति पूजनका पाठ, संक्षेपसें-किसी जगे-जिन पडिमा-किसी जगे-अरिहंत चेइयाणि ॥ के नामसे आता है उनका अर्थ, तदन विपरीत करके कोइ जगे तो-झानका, ढरको बतलाती है, और कोइ जगे परित्राजकका अर्थ करके दखलाती है ॥ और कोइ जगे पर-कामदेवकी मूर्तिकी-सिद्धि करके, दिखलाती है । और छेव. टमें-भगवानकी हैयातीके वख्तके, भगवान के परम श्रावकोंकी पाससें, वीतरागदेवकी-मूर्तिपूजारूप नित्य सेवा, छुडवायके, भूतादिक देवोंकीही, नित्य पूजा करवाती है, इससे सिद्ध होता है कि-ढूंढनी है सो जरुरही किसी भूतादिकके वशमें हुई है ! इसी लियेही कुछ विचार नहीं कर सकी है ॥ फिर भी कहती है किमूर्ति पूजाका-जिकर ही सूत्रोंमें, नहीं सो अब इनको-कौनसे दरजेपर, गिनेंगे कि-जिनको अपना घरकीभी खबर नहीं है । फिर लिखती है कि-तुह्मारे माने हुये ग्रंथों मेंही निषेध है, परंतु तुह्मारे बडे-सावधाचायाँने, तुझे मूर्ति पूजाका-नशा पिला रखा है. ॥ इसमें कहनेका इतनाही है कि-तुम ढूंढको, जब सनातनप
का-दावा, करनेको जाते हो तब तुम्हारे बडे ढूंढकों कौनसी-कोटडीमें, छुपके बैठे थे, जो हमारे-बडेको निषेध करनेके लिये, ए. कभी खडा न रहा । और जो आज थोडे दिनसे, जन्मा हुवा-जेठ मल्ल ढूंढककी पिलाइ हुई नशामें चकचुर बनके, मनमें आवे सोही बकवाद कर उठते हो ? ॥ और जो-व्यवहार चूलिका सूत्र संबंधी
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