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'कर्यबल कम्मा में कुतर्कों.
लिखा है, फिर पक्षपाती - अर्थ करते है कि श्रावकों का घरदेवतीर्थंकर देव होता है। ओ. ९ से तीर्थंकर देव - घरके देव, नहीं, घरके देवतो - पितर, दादेयां, बाबे, भूत, यक्षादि होते है ।। ओ. १५ सें - कुल-- देवका मानना, संसार खाते में, कुछ और होता है ॥ पृष्ट. १२७ ओ. १ सें - तुम्हारेही ग्रंथो मे -- २४ भगवान्के, शांसन यक्ष, यक्षनी, लिखे है, उन्हें कौन पूजता है इत्यर्थः।। ओ . ७ से - रायप्रश्नी में -- कठियाराने, वनमें स्नान किया, वहां बलिकर्म पाठ, लिखा है । समजने की बात है कि उसकठियारा पामरने तो--घर देवकी, वहां उजाड - पूजाकरी, जहां घर ना, घरदेव, उत्तम राजायोंकी - देवपूजा -- उडगई ।। पृष्ट. १२८. ओ. २ से--उक्तपाठ ओसकी - बुंदे टटोल २ के, मंदिर पूजाकी सिद्धिके - आसा रूपी कुंभको, भरसकोगे ? अपितु नहीं ओ. १६ सें-- निशीथादिमें, साधुको बहुत प्रकारके, व्यवहारकी विधि, लिख दी है, परंतु मूर्तिपूजाका न फल, न विधि, नना पूजने का दंड, लिखा है - ॥
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समीक्षा - पाठकवर्ग ! देखिये ढूंढनीजीकी चतुराई- 'बलिकर्म्मका ' अर्थ, अस्त व्यस्त हुई -कभी तो बलवृद्धि । कभी तो -स्नानकी, पूर्णविधि । कभी तो पंचयज्ञोमेंसे भूतयज्ञ । कभी तो दानाथे | कभीतो -- नवग्रह बालिका अर्थ - दिखाके, फिर --लिखती है कि कहीं कहीं - टीका, टव्वाकारोंने, रूढीसें- कयबलीकम्मा' का अर्थ, घरकादेव पूजा लिखा है, । फिर पक्षपातीओंने श्रावकों का घरदेव - तीर्थकर देव, करदिया, सो ठिक नहीं । पाठकवर्ग ? जो गुरुपरंपरासे, चला आया हुवा अर्थ- टीकाकार, और टव्त्राकार महापुरुषाने किया सोतो, रूढीका ठीक नहीं, तो क्या विनागुरु की ढूंढनीका किया हुवा, अगडं वगडं रूप अर्थ -ठिक होजायगा ! हे ढूंढनी तेरेको लिखतें-- कुछभी विचार, नही आता है ! ॥
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