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'कबाल कम्मा' में कुतको.
(१३३ )
दिरोंको, उपमा वाची, करती है, और मंदिर बनवानेका खंडनभी कहेती है, और कुतों पैं, कुतको करके-पृष्ट. १२३ ओ. ४ सें-लिखती है कि-नतो सारी मेदिनी (पृथ्वी) मंदिरों करके-भरी जाय, न १२ मा-देवलोक मिले ॥ ऐसा जूठा सोच करके-प्रत्यक्षपणे जिन मंदिरोंका-पाठका, लोप करती हुई-फिर लिखती है किसाते भली भांतिसे सिद्ध हुवाकि-सूत्र कतीने-उपमा, दीहे ॥ परंतु इहांपर ढूंढनी-इतना विचार,नही करती है कि-हजारो जैन सिद्धांतों में-जिस मंदिरोंका पाठकी-साक्षी होचुकी है, और पृथ्वी माता भी-आपणी गोदमें लेके,साथमें-सिद्धि दिखा रही है, उनका लोप करनेको-में कैसे प्रवृत्ति करती हुं ॥ फिर पृष्ट. १२४ ओ.३से-लिखती हैकि-द्वितीय यहभी प्रमाण हैं कि-प्रथम इसही,निशीथ के ३ अध्याय में-मूर्तिपूजाका-खंडन, लिखा है, ताते निश्चय हुवाकियहांभी-खंडन नहीं है, सूत्रमें-दो बात तो, होही नहीं सकतीहै । पाठकवर्ग ? महानिशीथतिसरा अध्यायके-पाठका अर्थभी, विपरीतही लिखाहै । सोहमारा लेखसे-ध्यान देके, विचार लेना, इस ढूंढनीको तो-सर्व जगेंपर, पीलाही पीला दिखताहै । न जाने क्या इनकी मतिमें--विपर्यासपणा हो गया है जो वीतराग देवसेंही, इत.. ना--द्वेषभावको प्रगट कर रही है ॥ इत्यलं पलवितेन ॥
से ॥इति महा निशीथ सूत्रके-पाठका, विचार॥
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। अब फवयाल कम्मा में—कुतकाओं, विचार ।। ढूंढनी-पृष्ट. १२१ से-(कयवलिकम्मा ) के पाठमें,-अनेक कुतर्कों कर के-पृष्ट. १२६ ओ. ५ से-लिखती है कि-कही २टीका, टब्बामें, रूढिसें-कयबली कम्मा का अर्थ-घरका देव पूजा
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