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( -१३२ )
महा निशय सूत्रका - पाठ.
|| अब महा निशीथ सूत्र के पाठका विचार || ढूंढनी - पृष्ट. १२१ से -- काउंपि जिणाययोहिं, मंडिय सब्व मेयणीवहं । दाणाइ चउक्केणं, सढूढो गछेज - च्चु जाव ॥ १ ॥
समीक्षा -- इस महानिशीथ सूत्रकें पाठसें, केवल श्रावककी करणी से गतिका प्रबंध किया है कि जिनमंदिरोंको, करवायके सर्व पृथ्वी भी मंडित करदेवे, और दानादि चार धर्मको भी करें, तोभी१२ मा देवलोकसे, अधिक गति - श्रावककी करनी से न होवे ||
इसका अर्थ ढूंढनी लिखती है कि- संपूर्ण भूमंडलको मंदिरों करके भरदे, (रचदे) दानादिचार करके, अर्थात् दान, शील, तप, भावना, इनचारोंके करनेसे, श्रावक जाय अच्युत १२ में देव लोक तक. || अब इहांपै यह ढूंढनी - मंदिरोंका अर्थको गपड सपड कर देके, केवल-दानादिकसे ही १२ में देवलोककी गति, दिखाती है । परंतु बारमा देवलोककी गति कराणेमें- दूसरा कारण भूत- जिन मंदिरों का धर्मको, साथमें क्यों नहीं लिखके - दिखाती है ? यह बे संबंध- तात्पर्य दिखाना, किस गुरुकीपाससे पढी ? ॥ फिर. पृष्ट. १२२ ओ. २ से-लिखती है कि इसगाथा में मंदिर बनवानेका, खंडन है कि, मंडन है | हाम पूछते है कि इस गाथामें मंदिर बनवाका खंडन है, वैसा किस गुरुने तूंने दिखा दिया ? ॥
फिर. ओ. ७ से कहती है कि- मंदिरको उपमा वाची श ब्द में लाके-ऐसें कहा है कि - मंदिरों करके चाहे सारी पृथ्वी भरदेतोभी- क्या होगा, दानादि करके - श्रावक १२ में देवलोक तक जाते है || पाठक वर्ग ? इस ढंढनीका, उद्धत्तपणा तो देखो कि-मं
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