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________________ . ॥ चमरेंद्रमें देवयं चेइयं ॥ - (१२१) णसे, 'इवपद' गर्भित होनेसे, यह अर्थ टीका, और टब्बाकार, महापुरुषोंने, गुरु परंपरासे-चला आया हुवा, लिखा है । सोइ अर्थ-सम्यक सल्पोद्धारमें लिखा है। परंतु तुमेरी तसं-स्वकल्पित अर्थ, नहीं लिखा है, जोतूं दूषितकर सकेगी ? किस वास्ते वीतराग देवकी आशातना करके-संसार भ्रमनका बोजा-उठाती हुई, लो कोंकोभी-देती है ? ___ और ढूंढनी-पृष्ट. ५० ओ. ६ सें-लिखती है कि-कोइभी, तु मारा "पार्थ " अवतार, ऐसे कहके, गालीदे तो-द्वेष आवे कि-. देखो यह कैसा दुष्ट बुद्धि है, जो हमारे-धर्मावतारको, निंदनीय वचनसे बोलता है. ॥ अव इस लेखसें भी विचारकरोकि-गालीदेने वाला तो, पार्श्वनाथके नामसे-अवतार, समजता नही । अथवा, समजके भी-अवतार रूप, मानता नहीं है, । तोपिछे ढूंढनीको-द्वेष, किसवास्ते आता है ? । इहांपुर ढूंढनी कहेंगी कि-वह पुरुष पार्श्व अवतार, नही मानता है, परंतु हमतो अवतार मानतेहै, इसवास्ते द्वेष आ जाताहै । तो अब इहांपर थोडासा सोचकर देखोकि जिसजिस, भव्य पुरुषोंने, परमशांत, पद्मासन आकृतिरूप, स्थापनाके आगे बैठकरके, वीतराग देवके गुणोंमें मन्नता होनेके लिये, जो यह वीतरागी मूर्तियोंकी रचना रची है, उस वीतरागदेवकी परमशांत मूर्तिको, कभी तो जड, कभी तो पाषाण, कभी तो अज्ञानरूप, कहकर जो अपभ्राजना करके उस भव्य पुरुषोंका चित्तको द्वेष उत्पन्न कराते है उनके जैसे दुष्ट बुद्धीवाले दूसरे कौन होंगे?॥. वीतराग देवकी मूर्तिकी तो अपभ्राजना, कभी होनेवाली नहीं है, परंतु ते निंदको ही वीतरागकी आशातनाके योगसे, अनेक भवों में, अपणा आत्माको अपभ्राजनाका पात्र बनालेते है, उसका विचार क्यों नहीं करती है ॥ ॥ इति चमरेंद्रका पाटकी साथ, देवयं चेझ्यं, का विचार ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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