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(१२४) ___ चमरेंद्र में -देवयं चेइयं. ___कइ विहाणं भंते मनुस्स लोए-पडिमा, पण्णत्ता, गोयमा अणेग विहा पण्णत्ता-उसभादिय वडमाण परियंते, अतीत, अनागए, चोवीसंगाणं तिथ्ययर पडिमा, इत्यादि ॥ पुनः-जिन पडिमाणं भंते-वंदमाणे, अच्चमाणे, । हंता गोयमा-बंदमाणे, अच्चमाणे. ॥
पृष्ट. १४८ में, तेराही लिखा हुवा अर्थ देख-हे भगवान् मनुप्ष लोकमें, कितने प्रकारकी प्रतिमा ( मूर्ति ) कही, गौतम अनेक प्रकारकी कहीहैं । ऋषभादि महावीर ( वर्द्धमान ) पर्यंत २४ तिथैकरोंकी । अतीत, अनागत-चौवीस तीर्थकरोंकी पडिमा, इत्यादि ।। हे भगवान् जिन पडिमाकी, वंदना करे, पूजाकरे, हां गौतमवैदे, पूजे. ॥ ___यह तेराही लेखसे, शाश्वती, तैसेही अशाश्वती, ऐसे दोनोही मकारकी 'जिन प्रतिमाओको, मूल-सिद्धांतोंका-पाठही, अना दि कालकी सिद्धिको दिखा रहा है, ॥ और जैन धर्मानुरागी है सो-अपणी अपणी योग्यता प्रमाणे-वंदन, पूजन भी, करतेही चले आते है,। और ते अनादि कालकी-जिन प्रतिमाओ, जिनेश्वर देवकेही सदृश होनेसें, वर्तमान कालके तीर्थकरको वंदन करनेवाले भक्तजनो है सो, होगये हुयें, और होनेवाले, सर्व तीर्थकरोंकी प्रति माओंका, और-देवलोकादिकमें रही हुई-शाश्वती जिनप्रतिमाओंका आदर, सत्कार-प्रदर्शित करनेके, बास्तेही-देवयंचेइयं, का पाठको -पठन करतेहुये, विद्यमान तीर्थकराको वंदन करते है, नहीके मू ढोंकीतर-पूढताको, प्रगट करते है. । इसवास्ते टीका, टब्बाकरोने, जो-अर्थ किया है सोई-यथार्थ है. ॥ और अलंकारके ग्रंथों के ममा
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