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चमरेंद्र में देवयं चेयं.
( १२३ )
लोंसे चुकी डुमनी गावे चाल पाताल, तैसे ही यह ढूंढनी भी
जैसा मनमें आता है तैसेही बकवाद करदिखाती है । और अपणा ढूंढक पंथको सनातनपणेका, दावाभी करनेको जाती है, परंतु एकभी जैन सिद्धांत का प्रमाणतो दिखातीही नही है । केवल टीकाकार - महापुरुषोंको, और टब्बाकार - महापुरुषों को निंदती हुई, सर्व पंडितोंमें अपणी ही पंडिताइपणेका प्रमाणको प्रगट करती है | परंतु इतना विचार भी नही करती है, कि टीका, टब्बाकार, म हापुरुषो ते कौन, और हुं ढूंढनी स्त्रीजाती मात्र ते कौन ? परंतु तुछ हृदय वालोंको विचार होता नही है. ॥
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और देवयं चेइयं, पदका अर्थ- प्रतिमाकी तरहका जो सares शल्योद्वार में किया है सो यथार्थही किया गया है, क्यों कि ' जिनप्रतिमा ' है सो - जिनेश्वर देवके -सदृशही, सिद्धांतकाराने -मानी है । और जिन प्रतिमा है सो तीनोही लोक में विराजमान है || देख तेराही थोथाका, पृष्ट १०२ में-ठाणांग सूत्रमें, तथा जीवा भिगम सूत्र में नंदीश्वर द्वीपका, तथा पर्वतोकी रचनाका, विशेष वर्णन - भगवंतने, किया है। और वहां शाश्वती - जिन मूर्ति मंदिरोंका, कथन भी है । तुं कहेगी कि यह शाश्वती जिन प्रतिमाओ तो जैन सिद्धांतों में है, और हम मानते भी है, परंतु अशाश्वती म तिमाओ, सिद्धांतो में नही है, यह भी तुमेरा कहना - विचार रहित - पका ही है,
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देख तेरीही पोथीका पृष्ट. १४७ में कि-जोतेरे ढूंढकोंने अंगी कार कीया हुवा - नंदी सूत्र है, उसी नंदीसूत्र में, वर्तमान कालके कि तक - सूत्रोंकी, नोंध दीई है, उसीही नोंधकी गीनती में आया हुआ, जो विवाह चूलीया, सूत्रका तूं ने पाठ, लिखा है सोई लिख दिखाता हुँ - तद्यथा ||
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