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( १६) ढूंढनीजीके-कितनेक, अपूर्ववाक्य. मूल सूत्रों, और माननीय जैन ऋषियोंके-९ मंतव्योंका, प्रबल यु. क्तिसे खंडन किया है। ___ इस लेख में भी विचार करनेका यह है कि हमारे ढूंढक भा. इयों-वीतराग धर्मके अवलंबन करनेवाले है कि, जैन धर्मको एक कलंक रूपके है ? क्योंकि-जैनके तत्त्वरूप-सूत्रोंका, और प्राचीन माननीय जैन धर्मके, महान् महान् ऋषियोंका-मंतव्योंका भी, खंडन करनेको उद्यत हुये है ? तो अब हमारे ढूंढकोंको-किस मतमें गीनेंगे।
फिर भी लिखती है कि-प्रबल युक्तियोंसें खंडन किया है। इस वातमें हम इतना ही कहते है कि गुरुविनाकी ढूंढनीजीमें प्रथम जैन तत्त्वोंको समजनेके ही ताकात नहीं है, तो पीछे जैन धर्मकेसूत्रोंको और जैन धर्म के महान महान ऋषियोंके-मंतव्योंको,खंडन ही क्या करनेवाली है।
फिर लिखती है कि-युक्ति भी ऐसी प्रबल दी है कि-जैन धर्मारूढ तो खंडन नहीं कर सकते है, परंतु अन्य संप्रदायिक भी खंडन नहीं कर सकतें । हे ढूंढनीजी ! थोडासा तो ख्यालकर किसमाकित सारमें-जेठमलजी ढूंढकने किइ हुइ-जूठी कुनों, कितने दिन चलीथी ?।
और गप्प दीपिका-तेरी ही किइ हुइ-जूठी कुतर्कों भी, कितने दिन तक चलीथी ? तो अब तेरा सत्यार्थकी-जूठी कुतर्को भी कितने दिन चलेगी?
किस बातपर जूठा गुमान कर रही है ? सत्यके आगे जूठ कहांतक टीक रहेगा ? । ढूंढनीजी लिखती है कि-बडे बडे विद्वानोंने भी श्लाघा (प्रसंसा ) की है।
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