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चमरेंद्रका पाठ
( १२१ ) देके, और विवाहार्थका संबंध जोडके, कामदेव के मंदिरका अर्थकरनेका प्रयत्न किया। अब जंघाचारण मुनि-जो अपणी लब्धिके प्रयोग से - रुचकर द्वीपमें, और नंदीश्वर द्वीपमें कि जिहां शाश्वते मंदिरोंमें शाश्वती जिनप्रतिमाओको, वंदनाकरनेको जाते है, उसका खास जो संबंधार्थ है, उनको छोडके, इनके बावेने रखा हुआ ज्ञानका - ढेरको, बतलाती है ? । अब ऐसी यह हठ दृढ ढूंढपंथिनी ढूंढनीको, क्या उपमा देंगे ? क्यों कि जो कोई आप नष्टरूप होके दूसरोंको भी - नाश करनेका प्रयत्न करें, उसको क्या कहेंगे ? ॥ ॥ इति नंदीश्वर द्वीपमें जंघाचारण गयेका विचार ||
|| अब चमरेंद्रके - पाठका विचार ||
ढूंढनी - पृष्ट. १०६ ओ. १० से चमर नामा- भसुरेंद्र, जोप्रथम स्वर्गमे, गया है ।। पृष्ट १०८ ओ. १५ से - तहां सक्रेंद्रने - वि चार किया कि । यह चमरेंद्र, ऊर्ध लोकमे आनेकी शक्ति तो, र खता नहीं है, परंतु - ३ महिला किसी एकका - शरणा लेके आसक्ता है ||
पृष्ट १०९ यथा सूत्र - गणत्थ अरिहंतेवा १ | अरिहंत चेइयाणिवा २ अणगारेवा भाविपप्पाणो णीसाए उदढं उपयंति || ढूंढनीका अर्थ- ३४ अतिशय, ३५ वाणी संयुक्त - अरिहंत १ | अरिहंत चैत्यानि - अर्थात् चैत्यपद - अरिहंत छस्था यति पदमें, क्योंकि अरिहंत देवको जबतक केवल ज्ञान, नहीं होय, तबतकपंचमपदमे, होते है, जब केवल ज्ञान होवे तत्र - अरिहंत पदनें होतें है. २
सामान्य साधु - भावितात्मा. ३ | इनतीन में से किसीका शरण
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