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जंघाचारणे- पतिमा वांदी.
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नैको ही फिरते है | परंतु तेरा मान्य किया हुवा - ज्ञानका ढेरकों, वंदना करनेको, नहीं--फिरते है, ॥ और ढूंढनी कहती है किasयाई वंदs नमसइ ऐसा पाठ नही आया, सो केवल - स्तुति कीगई है, नमस्कार किसी को नही करी ॥ बैसा लिखकर, धातुका अर्थ, दिखाती है, कि - वदि अभिवादन स्तुत्योः अर्थात् 'वदि' धातु, अभिवादन - स्तुति करने के अर्थ में है । हे पंडिते ! तुने क्या वदि' धातुका अर्थ - एक स्तुति करने मात्रका ही दिखा ? तो क्या अभिवादन, और स्तुति, यह दोनो अर्थ, द्विवचनसे, दिखाई न दिया ? जो स्तुतिमात्र एकही अर्थ करती है ? । देख अभिवादन शब्दका अर्थ, शब्दस्तोम महानिधि कोशमें- अभिवादनं स्वनामोचार पूर्वक- नमने, अर्थात् नमन अर्थमें, अभिवादन शब्द होता है । इस वास्ते वदि धातुका प्रयोग करनेसे - वंदना काभी, और स्तुति करने aria - यहहोनो अर्थ काही समावेश किया गया है, किस वास्तेस्तुति मात्र अर्थका जूठा पुकार करती है ? | पाठक वर्ग ! इहां समजने का यह है कि - प्रथम अंबड परिव्राजक के विषय में अरिहंत चेइयाई, इसका अर्थ- इस ढूंढनीजीने- अरिहंतका सम्यक् ज्ञान, अर्थात् भेष तो हे परिव्राजक, शाक्यादिका, । और सम्यक्त्व व्रत । वा अणुव्रत । महाव्रतरूप धर्म । अंगीकार किया हुआ जिनाशानुसार कियाथा | और गणथ्य अरिहंतेवा अरिहंत चेइया शिवा इहांपर, अरिहंतजीको, और - अरिहंत देवजीकी आज्ञानुकुल - संयमका पालनेवाले - चैत्यालय, अर्थात् चैत्यनाम ज्ञान, आलय नाम घर, ज्ञानकाघर । वैसा अर्थ कियाथा, । सो यह संबधार्थ तो इस ढूंढनीको मिलगया | और द्रौपदीजी के विषयेकुतर्कों पैभी कुतर्कों करके मगटरूप- जिनप्रतिमाका, अर्थको छोड़
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