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वज्रकरण में कुतर्क.
दंडनी - पृष्ट ३९ ओ. ९ से हर एकने - मूर्त्तिको देखके, ऐसानहिं किया, क्योंकि यहशास्त्रांक्त क्रियानही है इत्यादि । भगवंतने उपदेश कियाहोकि - यहक्रिया इसविधिसे, ऐसे करनी योग्य है इत्यादि ॥
समीक्षा - पाठकवर्ग ? ढूंढनी लिखती है कि - हरएकने मृति देखके, ऐसा नहिं किया. यहशास्त्रोक्तक्रिया नहीं है । विचार यह हैं कि - जे वीतरागदेवकी - मूर्तिकी स्थापना, हजारो वरस से होतीआई, और सारी पृथ्वीकोभी मंडित कर रही है, और हजारो सालो में लेखभी हो चुका है, तोभी ढूंढनी कहती है कि - यह शास्त्रोक्त विधि नही है. ॥ यह कैसा न्याय है कि - अंधेके आगे हजारो - दीपक, प्रगट करनेपरभी, और ऊलको सूर्यका - प्रकाश, दिखानेपरभी, कहदेवें कि दीपकका, और सूर्यका - प्रकाश तो है ही नही. उनको हम कैसे समजावेंगें ?
॥ इति मल्लादिन कुमार ||
|| अब वज्र करणमें कुतर्क ||
ढूंढनी - पृष्ट. ४० ओ. ९ सें पद्मपुराण ( रामचरित्र ) में - वज्रकरणने - अंगुठीमें 'मूर्ति' कराई, ॥ आगे ओ. १२ सें - यह सब उच्च, नीच, कर्म, मिथ्यादि पुण्यपापका, स्वरूप दिखानेको, संबंधमें कथन, आजाता है, यहनहीं जानना कि सूत्र में कहें हैं तो करने योग्य होगया ॥
समक्षा — ढूंढनीका हढतो देखो, कितना जबरजस्त है, कि, जिस वीतराग देवकी - मूर्तिका पुजनसे, श्रावकोंको- पुण्यकी प्राप्ति होती होवे सोभी, करनके योग्य नहीं । और वज्रकरणको परम
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