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मूर्तिका मुकद्दमा.
(७७) सम्यक्कधारी श्रावक जानके, रामलक्षमण दोनो भाईने पक्षमें होके, जय दिवाया । सो वज्रकरणभी- वीतरागदेवकी मूर्ति शिवाय दूसरेको नमस्कार करनेवाला नहीथा. उसीही पुण्यके प्रबलसें, जय भी प्राप्त हुवा. ढूंढनी लिखती है कि करने के योग्य नहीं, हठकी प्रबलता तो देखो ?
जो कार्य दुखदाई हो, सो कार्य करने के योग्य नही होता है । परंतु जो कार्य इस लोकमें, और परलोकमें, सदा सुखदाता है, सो भी कार्य करने लायक नही ? ऐसा किस गुरुके पास पढी ?
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॥ इति वज्रकरण में कुतर्कका विचार. ॥
| अब मूर्त्तिके आगे मुकद्दमा ||
ढूंढनी - पृष्ट ४२ ओ ३ से - राजाकी मूर्त्तिको लावें तो, मुकहमें, नकलें, कौन उस मूर्त्तिके आगे, पेश करता है. ॥
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समीक्षा - पाठक वर्ग ! राजाकी मूर्त्तिके आगे - मुकद्दमें, नकलें, पेश नही होतें है, यह मान लिया । परंतु दूर देश में जब राजा चला गया, तब उसके नाम मात्रसेंभी - मुकद्दमें, नकलें, पेश न किई जायगी । तो पिछे तीर्थकरों के अभाव में तीर्थकरों के ' नामसें ' यह ढूंढ़को, हे भगवन २ का नाम, दे दे के, क्यौं कुकवा करते है ? क्यौंकि ढूंढनीके मानने मुजब कुछ सिद्धि तो, होनेवाली है नही । यह ढूंढनी - कुतर्कों से थोथी पोथी भरके, अपणी पंडितानीपणा दिखलाती है, परंतु विचार नही करती है कि, ऐसा लिखनेसे मेरी गतिभी क्या होगी. ।।
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