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मल्लदिन कुमार जैसें ज्ञातासुत्रमें-मल्लदिन कुमारन, चित्रशालीमें-मल्लि कुमारीकी 'मूर्तिको देखके-लज्जा पाई, और अदव-उठाया, और चित्रकार पै-क्रोधकिया, ऐसा लिखा है ॥
- समीक्षा-पाठकवर्ग! बाप, बावेकी, मूर्ति, बनाके नही पूनते है सो सत्य है. तो वह विद्यमान हुभी, कौन पूनते है ! जब विद्यमान हुयेको नहि पूजत है, तो पिछे उनकी-मूर्तिकी, पुजा, ढूंढनी कैसे-कराती है, यह तो केवल कुतर्क है ।। और समुन रकी मुर्तिसें-टेकी बहु, चूंघट नही खैची है तो, स्वसुरकी बातां करनेके वख्त परभी-बूंघट न बँचेगी । और जो बाप, बाबेकी 'मूर्ति' पै-अदब नहीं करता है. सो बाप बावेका-नामपैभी, अदव न करेंगा । तो उनोका नामभी निरर्थक हो जायगा ।। जब वैसा हुवा तब तो तुमको,-भगवान्का-नामसेभी, कुछ लाभ न होगा, तेरी कुतर्क तेरेकुं ही-बाधक रूप है ॥ और तूं लिखती है किमल्लादिनकमारने, चित्रशालीमें-मल्लिकुमारीकी-मूर्तिको, देखके-लज्जापाई, अदब, उठाया, इस्यादि.
जब मोहके वससेभी, मल्लादिनकुमारने-मल्लिकुमारीकी मूर्तिकी लज्जा किई, और अदब उठाया, । तब अरिहंतदेवके-परमरागी, प. रम भक्त, जो होंगे सोतो, वीतरागदेवकी-मूर्तिको, देखतेकि साथ, आनंदितहोके अवश्य ही अदब उठावेगा, और रंगतानमें-मनभी होजायगा ।। और जिसको महामोहके उदयसे गाढ मिथ्यात्वकी प्राप्तिहुईहोंगी सो, और बहुतकालतक संसार परिभ्रमण करना रहा होगा सो-निर्लज्ज होकेही वीतरागदेवकी ' मूर्तिकी' बेअ. दबी करेगा. परंतु भव्यपुरुषतो कभीही-बै अदबी न करेगा.॥
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