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आठो विकल्पका तात्पर्य..
चेतन है सो, तीर्थकरकी पूर्वकालकी अवस्था रूपे, ' द्रव्यनिक्षेपका' विषय है, उनको ढूंढनी 'भावरूपसे' लिखदीखाती है, और अपणी चातुरी प्रगट करती है, परंतु अपणा जूठा लिखा हुवा, द्रव्यनिक्षेपका लक्षण तरफभी ख्याल नही करती है. । देखो ढूंढनीका द्रव्यनिक्षेपका लक्षण-पस्तुका वर्तमान गुणरहित, अतीत अथवा अनागत गुणसहित, और आकार, नामभी सहित, सो द्रव्यनिक्षेप, । अ व इस जूठा लक्षणसे भी, पाठकवर्ग विचार करेंकि, भगवान ऐसे नाम कर्मवाला चेतन, तीर्थकर पदके अतीत कालकी अवस्था रूपसे है या नहीं ? जब अतीत कालमें भगवान् ऐसे नामकर्मको धारण किया तबतो अवश्य मेव द्रव्यनिक्षेपका विषय हुवा, उनको ढूंढनी भाव मात्र किस हिसाबसे दिखाती है ? सो पाठकवर्ग अछी तरांसें विचार करें। जब तीर्थंकरकी ऋद्धिको प्राप्त होके तीर्थकर पदका भोग कर रहै है, उनको भावनिक्षेप कहना सो तो युक्ति युक्तही है.। और आजतक जितने ढूंढक होते आये सोभी, यूंही कहते आये है के, साक्षात् तीर्थकर पदमें विराजते होवे, उस 'भावनिक्षेप' को हम मानते है, परंतु इस ढूंढनीने तो, कोई नवीन प्रकारकी चातुरी काही आचरण करके दिखाया है. ॥
इति भाव, और भावनिक्षेप,का विचार.
देखिये इस विषयमें तात्पर्य-सूत्रकारने वस्तुमें ही 'चार निक्षेप' का करणा निश्चयसें कहा है.
अब ढूंढनी-निक्षेप तो करने लगीहें-इक्षुरसके सार वस्तुका,उनका निर्वाह किये विना, मिशरी वस्तुका ' नाम निक्षेप ' कन्यारूप दूसरी वस्तुमें कर दिखाया. । तैसें ही ऋषभदेव वस्तुका 'ना. मनिक्षेप' पुरुषरूप दूसरी वस्तुमें कर दिखाया. । और दोनो व
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