________________
भाव, और , भावनिक्षेप' का विचार. (६९) __ और पूर्वोक्त मिट्टीके कूज्जेमें, मिशरी भरी हुई सो, भाव निक्षेप ॥ ___ अब देखिये इसमें विचार-जो इक्षुरसका सार, मिठापण विगरेसे, वस्तुका भाव निक्षेपपणाको प्राप्त हुवा है, उनको ढंढनी 'भाव' ठहराती है. । और जो मिट्टीके कूज्जेमें, मिशरीपणेका-एक अंशमात्र भी गुण नहीं है, उनको मिशरी नामकी वस्तुका 'भाव निक्षेप, ठहराती है. । और अपणा किया हुवा लक्षणमें-वस्तुका नाम, आकार, और वर्तमान गुग सहित, सो,-भाव निक्षेप, वैशा लिख दिखाती है. | तो अब मिट्टीके कूज्जेमें, मिशरी वस्तुका गुण क्या है ? और मिट्टीके कूज्जेको-मिशरी नामसें, कौन कहता है. ?। और यह ढूंढनी सूत्रसें तो, भाव आवश्यकमें, उपयोग सहि आवश्यकका करणा, वैशा लिखके आवश्यकका भावनिक्षेप लिख दिखाती है, और इहां मिशरी वस्तुका ‘भाव निक्षेपमें ' मिट्टीका कूज्जा दिखाती है. । भाव निक्षेप करने तो लगी है मिशरी वस्तुका, और दिखाती है मिट्ठीका कूज्जा, क्या मिट्ठीका कूज्जेको मिशरी करके, ढूंढनी खा जाती है ? । हे ढूंढनीजी होरीके विवाहमें, वीरीको कैसे घर देती है ? | ___अब देखिये ऋषभदेवके विषयमें, भाव, और भाव निक्षेप ढूंढनीजीका. ॥
भगवान् ऐसे नाम कर्मवाला चेतन, चतुष्टय गुण, प्रकाशरूप आत्मा, सो 'भाव' ऋषभदेव. ।। ___ और, शरीर स्थित, पूर्वोक्त चतुष्टय गुणसहित, 'आत्मा' सो 'भावनिक्षप' है.॥
अब देखिये इसमें विचार-जो भगवान् ऐसे नाम कर्मवाला
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org