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( ६८ )
भावं, और 'भाव निक्षेप' का विचार.
सहित, वर्त्तमान कालमें भावगुण रहित शरीर, अर्थात् ऋषभदेवजी निर्वाण हुए पीछे, यावत्काल शरीरको दाह नहीं किया, तावत्काल जो मृतक शरीर रहाथा सो ' द्रव्यनिक्षेप ? | ऋषभदेवजी वाले गुण करके रहित, कार्य साधक नही, ताते निरर्थक है ॥
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॥ इहां पर देखिये ढूंढनीजी की धिठाई, जो ऋषभ देवका २ भविअ शरीर, ( अर्थात् भविष्य कालमें, तीर्थंकरकी ऋ द्धिका भोग करने वाला शरीर, सो तो ठहराया ' द्रव्य ' । और जाणंग सरीर ' ( अर्थात् ऋषभ देवजीका मृतक शरीर ) सो तो ठहराया ' द्रव्य निक्षेप' और सूत्रपाठसें,-नो आगम के भेदमें, १ जाग सरीर, और २ भविअ सरीर, यह दोनो भेदको भी लिखती है ' द्रव्यनिक्षेप' । तो अब विचार किजीये-ढूंढनीके लेखमें, कितनी सत्यता है ? | यह ढूंढनी अपणाही लेखमें पूर्वाऽपरका वि चार किये बिना, विवेक रहितपणेका आचरण करती है या नही ? सो पाठक वर्ग- लक्षण, और सूत्र पाठसें भी, वारंवार विचार करें ! में कहां तक लिखके पत्रे भरूंगा ? यह ढूंढनीजी कभी दूसरेका लेख तरफ ध्यान न देती, परंतु अपणा लेख तरफ तो ध्यान देके लिखती ? तब भी हमको इतना परिश्रम नही करना पडता, परंतु जहां कुछ विचार ही नहीं है ऐसेंको हम कहें भी क्या ? ||
इति ढूंढनीजीका - द्रव्य और द्रव्यनिक्षेप, का विचार.
|| अब देखिये ढूंढनीका ' भाव ' और ' भावनिक्षेप' का बिचार ||
मिशरीका मिठापण, तथा स्निग्ध, ( शरदतर ) स्वभाव (तासीर ) सो भाव मिशरी ॥
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