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भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएं | ५७
पहले अन्य साधुओं को निमन्त्रित करता और कहता है कि यदि मेरे लाये भोजन में से कुछ ग्रहण करे तो मैं संसार सागर से तिर जाऊ ।
साहू होज्जामि तारिओ।। दशकालिक सूत्र के इन शब्दों में यही नीति परिलक्षित होती है। भगवान महावीर ने 'संविभागशील' समूह में बांटकर सबके साथ मिलकर रहने का आदेश/उपदेश किया है।
वैदिक परम्परा भी सामूहिकता अथवा संगठन का माहात्म्य मानती है। संघौ शक्तिः कलौयुगे-कलियुग में संगठन ही शक्ति है-इन शब्दों में सामूहिकता की नीति ही मुखर हो रही है ।
आधुनिक युग में प्रचलित शासन प्रणाली-प्रजातन्त्र का आधार तो सामूहिकता है ही। ये शब्द प्रजातन्त्र का प्रमुख नारा (slogan) हैं
___United we stand, divided we fall. (सामूहिक रूप में हम विजयी होते हैं और विभाजित होने पर हमारा पतन हो जाता है।) सामूहिकता की नीति देश, जाति, समाज सभी के लिए हितकर है।
___ स्वहित और लोकहित . स्वहित और लोकहित नैतिक चिन्तन के सदा से ही महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं । इसका प्रमुख कारण यह है कि यह दोनों परस्पर विरोधी प्रत्यय हैं । एक पूर्वोन्मुख है तो दूसरा पश्चिमोन्मुख ।
विदुर और चाणक्य ने स्वहित को प्रमुखता दी है और कुछ अन्य नीतिकारों ने परहित अथवा लोकहित को प्रमुख माना है, कहा है-अपने लिए तो सभी जीते हैं जो दूसरों के लिए जीए, जीवन उसी का है । यहां तक कहा गया है-जिस जीवन में लोकहित न हो उससे तो मृत्यु ही श्रेयस्कर है । इस प्रकार की परस्पर विरोधी और एकांगी नीति-धाराएँ नीति साहित्य में प्राप्त होती हैं।
१. दशवकालिक सूत्र ५।१२५
२ विदुर नीति १६ ३ चाणक्य नीति ११३; पंचतंत्र ११३८७ ४ सुभाषित-उद्धृत नीति शास्त्र का सर्वेक्षण, पृ० २०८ ५ वही, पृष्ठ २०५
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