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५६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
विनय में अपने को स्थिर रखे। विनय नीति का पालन करे ।
गुरुजनों, माता-पिता आदि की विनय परिवार में सुख-शांति का वातावरण निर्मित करती है तथा मित्रों, सम्बन्धियों, समाज के सभी व्यक्तियों के प्रति विनययुक्त व्यवहार, यश-कीर्ति तथा प्रेम एवं उन्नति की स्थिति के निर्माण में सहायक होता है। मैत्री नीति
__ मित्रता को संसार के सभी विचारक श्रेष्ठ नीति स्वीकार करते हैं किन्तु उनकी दृष्टि सिर्फ अपनी ही जाति तक सीमित रह गई, कुछ थोड़े-से आगे बढ़े तो उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के साथ मित्रता नीति के पालन की बात कही।
किन्तु भगवान महावीर की मैत्री-नीति का दायरा बहुत विस्तृत है, वे प्राणीमात्र के साथ मित्रता की नीति का पालन करने की बात कहते हैं
मित्ती भूएसु कप्पए । प्राणी मात्र के साथ मैत्री का मित्रता की नीति का पालन करे ।
भगवान की इसी आज्ञा को हृदयंगम करके प्रत्येक जैन यह भावना करता है
मित्ती मे सव्व भएसु वेरं मज्झ न केणई 12 प्राणी मात्र के साथ मेरी मैत्री (मित्रता) है, किसी के भी साथ शत्रुता नहीं है।
मित्रता की यह नीति स्वयं को, और अपने साथ अन्य सभी प्राणियों को आश्वस्त करने की नीति है।
सामूहिकता की नीति सामूहिकता अथवा एकता सदा से ही संसार की प्रमुख आवश्यकता रही है । बिखराव, अलगपने की प्रवृत्ति अनैतिक है और परस्पर सद्भाव, सौहार्द, मेल-मिलाप नैतिक है ।
भगवान महावीर ने सामूहिकता तथा संघ ऐक्य का महत्त्व साधुओं को बताया। उनके संकेत का अनुगमन करते हुए साधु भोजन करने से
१. उत्तराध्ययन सूत्र ६२
२. आवश्यक सूत्र ५
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