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भगवान महावीर की नीति-अवधारणाएं | ५५
व्यक्ति भी गाली दे अथवा दुष्टतापूर्ण व्यवहार करे तो संघर्ष की, कलह की स्थिति बन जाय और यदि वह समता का भाव रखे, समता नीति का पालन करे तो संघर्ष शांति में बदल जायेगा।
समाज व्यवहार तथा लोक में शांतिहेतु समता की नीति की उपयोगिता सभी के जीवन में प्रत्यक्ष है, अनुभवगम्य है।
समता नीति का हार्द है-सभी प्राणियों का सुख-दुःख अपने ही सुख-दुःख के समान समझना । सभी सूख चाहते हैं, दुःख कोई भी नहीं चाहता।' इसका आशय यह है कि ऐसा कोई भी काम न करना जिससे किसी का दिल दुखे और यह समता नीति द्वारा ही हो सकता है। अनुशासन एवं विनय नीति
विनय एवं अनुशासन संसार की ज्वलन्त समस्यायें हैं। अनुशासन समाज में सुव्यवस्था का मूल कारण है और विनय जीवन में सुख-शांति प्रदान करती है।
यद्यपि विनय तथा अनुशासन को सभी ने महत्त्व दिया है किन्तु भगवान महावीर ने इसे जीवन का आवश्यक अंग बताया है। उन्होंने तो विनय को धर्म का मूल-'विणयमूले धम्मे' कहा है।
विनय का लोक-व्यवहार में अत्यधिक महत्त्व है । एक भी अविनयपूर्ण वचन कलह और क्लेश का वातावरण उत्पन्न कर देता है जबकि विनय-नीति के पालन से संघर्ष की अग्नि शांत हो जाती है, वैर का दावानल सौहार्दता में परिणत हो जाता है।
विनय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की कुंजी है।
लेकिन विनय नीति का पालन वही कर पाता है जो अनुशासित (disciplined) हो; अनुशासन पाकर कुपित न हो। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा
अणुसासिओ न कुप्पिज्जा । अनुशासन में रहते हुए कुपित/क्षुभित न हो।
विणए ठविज्ज अप्पाणं ।
१ सव्दे जीवा सुहसाया ""दुक्ख पडिकूला-आचारांग।१।१ २ उत्तराध्य यन सूत्र १६
३ उत्तराध्ययन सूत्र १८
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