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पड़ोसी के साथ व्यवहार की नीति के विषय में कहा है
Thou shalt not hurt thy neighbour.
तुम अपने पड़ोसी को हानि मत पहुँचाओ ।
परिग्रह मानवता के विकास में बहुत बड़ा बाधक है । परिग्रही व्यक्ति के हृदय से मानवता पलायन कर जाती है । अतः अपरिग्रह नीति का अनुसरण करते हुए बताया है
नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास | ४१
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"सुई के छेद में से ऊँट का निकल जाना संभव है किन्तु किसी धनवान व्यक्ति का स्वर्ग में प्रवेश पाना असम्भव है ।"
इन शब्दों में उन्होंने संग्रह - विरक्ति की नीति का उपदेश दिया । समझौता, सुलह और प्रेमभाव की नीति का प्रसार करने के लिए उन्होंने कहा
• " यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो उसकी ओर अपना दूसरा गाल कर दो ।"
समाज में सुख, शांति और सामाजिक नीतियां आवश्यक भी हैं और उपयोगी भी ।
'सुव्यवस्था के लिए यह सभी
इस प्रकार बाइबिल में नीति के अनेक आदर्श वचन मिलते हैं ।
पाश्चात्य नीतिशास्त्र का विकास
पाश्चात्य नीतिशास्त्र का उद्भव सुकरात से माना जाता है । इसका समय ईसा पूर्व छठी शताब्दी का है ।
सुकरात की समस्या विशुद्ध रूप से नैतिक समस्या थी । उसने अपने नैतिक विचारों का प्रसार किया । वे सिद्धान्त राज्य के सिद्धान्तों से मेल नहीं खाते थे । नवयुवकों को भ्रष्ट करने का आरोप लगाकर उसे मृत्युदण्ड दिया गया जिसे उसने सहर्ष स्वीकार करके विष का प्याला पीकर प्राणोत्सर्ग कर दिया ।
अपने अन्तिम समय में सुकरात ने अपने मित्र काइटो को तीन सिद्धान्त दिये
(१) किसी को हानि न पहुँचाना (२) अपने वायदों का पालन करना
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