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________________ (१) आसक्ति का त्याग करके काम करना । " (२) आघात के बदले दया करना, (३) छोटे में बड़ा देखना | नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास | ३७ सुखी रहने की नीति के विषय में लाओत्से कहता है आप मुंह बन्द करें, आंखें और कान भी बन्द करें, जन्म-भर आपको कोई उपद्रव न होगा । किन्तु यदि आप मुंह खोलेंगे, चालाकी दिखायेंगे तो जन्मभर दुखी रहेंगे | 2 भारत में जो, गांधीजी के तीन बन्दर प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक आंखें बन्द किये हुए है, दूसरा कान और तीसरा मुंह, वह लाओत्से के इसी सिद्धान्त पर आधारित हैं | लाओत्से ने ही तीन बन्दरों की मूर्ति सर्वप्रथम बनायी थी और 'बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो' की नीति सुखी जीवन के लिए निर्धारित की थीं । ४ वही ६ वही खुशामद भरे शब्दों पर अविश्वास करने की नीति के विषय में बताते हुए लाओत्से कहता है तड़पन भरे शब्द लच्छेदार नहीं होते । लच्छेदार शब्द विश्वासयोग्य नहीं होते ॥ लाओत्से व्यक्ति के स्वयं अपने सुधार' की नीति में विश्वास करता है । वह दवाब अथवा दण्ड से सुधार की नीति को गलत मानता है । उसका मानना है, इस तरह लोग धूर्त बन जाते हैं ।" वह समझौते की नीति पर विश्वास करता है और इसी को व्यावहारिक जीवन में उपयोगी समझता है तथा सुख-शांति का राजमार्ग मानता है । इस प्रकार लाओत्से की नीति सरलता, समझौता, किसी की बुराई ( निन्दा ) न करना, खुशामदियों से दूर रहना आदि है । १ ताओ उपनिषद् ६३ । तुलना करिए - कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । २ ताओ उपनिषद् ५३ Jain Education International g ५८ ७६ ३ ताओ उपनिषद् ५ वही For Personal & Private Use Only —गीता ८१ ५७ www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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