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३६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
भदन्त आनन्द कौशल्यायन के अनुसार 'लोकनीति' नाम का पालि ग्रन्थ लंका में है । उसमें व्यवहार नीति का ही वर्णन है ।
इस प्रकार पालि साहित्य में नीति के लगभग सभी रूप प्राप्त होते हैं । इस दृष्टि से पालि साहित्य अच्छा समृद्ध है ।
(II) एशिया की अन्य नीतिधाराएँ
अब तक की पंक्तियों में हमने उन नीतिधाराओं का संक्षिप्त परि चय दिया, जो भारतभूमि में ही उत्पन्न हुईं और यहीं विकसित हुईं । किन्तु अब उन नीति-धाराओं का परिचय दे रहे हैं जिनका उत्पत्ति स्थल एशिया महाद्वीप है ।
ये धाराएँ हैं— चीन देश की, फारस की, महात्मा ईसामसीह की और हजरत मुहम्मद साहब की तथा यूनानी विचारकों प्लेटो, अरस्तू आदि की ।
यद्यपि यूनान भी एशिया महाद्वीप में है और ईसामसीह की जन्मस्थली भी एशिया महाद्वीप ही है, किन्तु यूनानी विचारकों का सर्वाधिक प्रभाव पश्चिमी देशों पर हुआ, भारत और भारतीय नीति पर इनका प्रभाव नगण्य - सा रहा । ईसामसीह की नीति का प्रभाव अंग्रेजों के भारत पर शासन के कारण यूनानी विचारकों की नीति सम्बन्धी विचारधाराओं की अपेक्षा कुछ अधिक रहा ।
ताओ की नीति - परम्परा
ताओ एक विचारधारा है। इसका पुरस्कर्ता लाओत्से है जो चीन देश में ईसापूर्व छठी शताब्दी में पैदा हुआ ।
लाओत्से एक गम्भीर तत्वचिन्तक और विचारक है । उसके विचारों का संकलन ताओ उपनिषद् नाम के ग्रन्थ में हुआ है ।
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लाओत्सेने ईश्वर का नाम ' ताओ' दिया है और उसे सर्वव्यापी तथा प्रेममय बताया है । 'ताओ तेह किंग' लाओत्से की अमर रचना है । 'तेह' उस ताओ को प्राप्त करने का उपाय है । इसी पर लाओत्से की सम्पूर्ण नीति आधारित है; दूसरे शब्दों में 'तेह' उसकी सम्पूर्ण नीति की आधार
शिला है ।
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से की नीति के प्रमुख तत्व हैं
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