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________________ ३४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन अतदत्थं परत्थेत बहुनापि न हायवे । अत्तदत्थमभिज्ञाय सदत्यपसु तो सिवा ॥ - ( परोपकार के लिए आत्मार्थ को बहुत न छोड़े । आत्मार्थ को जानकर सदर्थ में लगे ।) जातक, बोधिसत्वों, तथागत बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाओं के संकलन है । ५४७ जातक मिलते हैं । यद्यपि बौद्ध परम्परा इन कथाओं को तथागत बुद्ध के पूर्वजन्मों से सम्बन्धित मानती है, किन्तु विद्वानों का विचार है कि `मुलतः यह कथाएँ लोक कथाएँ हैं जिन्हें बौद्धधर्म और उसके उपदेशों के अनुसार स्वरूप प्रदान कर दिया है । 1 लेकिन संस्कृत के कथा साहित्य पर और महाभारत तथा पंचतन्त्र पर तो इनका प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है । 2 शैल यह है कि किसी भी नीति या उपदेश के लिए एक कथा ली गई है और उस कथा के बीच में या अन्त में नीतिपरक गाथा दे दी गई है । उस गाथा में नीति का उपदेश दे दिया गया है । कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा रहे हैं । रोहिणी जातक की यह गाथा देखिए सेय्यो अमित्तो मेधावी यञ्चे बाला नु कंपको ॥ पस्स रोहिणिकं जम्मि मातरं हन्त्वा सोचती ॥ - ( मूर्ख दयालु मित्र की अपेक्षा बुद्धिमान शत्रु अच्छा है । मूर्ख रोहिणी को देखो, माता को मारकर अब दुःखी होती है ।) इस नीति की पृष्ठभूमि में कथा यह है - रोहिणी की माँ एक बार सो रही थी, उसे मक्खियां परेशान करने लगीं । मां ने रोहिणी को मक्खी उड़ाने को कहा तो उसने मूसल इतनी जोर से मारा कि माँ के प्राण पखेरू ही उड़ गये । रोहिणी रोने लगी । 'नादान दोस्त से दाना (समझदार) दुश्मन अच्छा' जैसी फारसी की ओर better to have a wise foe than a foolish friend जैसी अंग्रेजी सूक्ति और लोकोक्तियों में इसकी छाया स्पष्ट है । Jain Education International १ डा. भोलानाथ तिवारी हिन्दी नीति काव्य, पृ० ४४ २ वही, पृष्ठ ४४ ३ जातक १, (रोहिणी जातक), पृ० ३२३-२५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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