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________________ ३२ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन चिन्तामणि, वरुचिकृत नीतिरत्न, वैतालभट्टकृत नीतिप्रदीप आदि शताधिक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। इनमें से चाणक्य नीति सूत्र शैली में रचित है और शेष ग्रन्थों की रचना श्लोकों में की गई है। इनमें सीधे-सादे शब्दों नीति-सिद्धान्तों के निर्देश हैं। यहां नीति सम्बन्धी दो प्राचीन प्राकृत ग्रन्थ भी उल्लेखनीय हैं(१) गौतम कुलक । एवं (२) उपदेश सप्ततिका। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, जिनमें नीति की शिक्षा अप्रत्यक्ष रूप से दी गई है। इन्हें अन्योक्ति कहा गया है। वीरेश्वर, विजयगणि, नीलकण्ठ, जगन्नाथ आदि के अन्योक्ति शतक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । अन्योक्ति शतकों की संख्या भी काफी अधिक है। इनमें केला, आम, कटहल आदि वृक्षों, चातक, मोर, बाज आदि पक्षियों; सिंह, गीदड़, मृग आदि पशुओं, पृथ्वी, बादल, सूर्य आदि प्राकृतिक वस्तुओं तथा झिल्ली आदि कीट-पतंगों को सम्बोधित करके नीति की बातें कही गई हैं जो विभिन्न रुचि प्रवृत्ति और श्रेणी के पुरुषों पर घटित होती हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य ग्रन्थ भी नीति सम्बन्धित हैं जिनकी रचना मुक्तक शैली में हुई है। इन्हें सुभाषित ग्रन्थ कहा जाता है। संस्कृत के प्रमुख सुभाषित ग्रन्थ हैं-कवीन्द्र वचन समुच्चय, सुभाषित कौस्तुभ, सुभाषित त्रिशती, सुभाषित रत्नाकर, सुभाषित रत्न भांडागार, सदुक्ति कर्णामृत (श्रीधर दास), सुभाषितावली (वल्लभदेव), सुभाषित रत्न सन्दोह (अमित गति) आदि। इस प्रकार वेदों से प्रारम्भ होकर, ब्राह्मण, स्मृति, महाकाव्य, पुराण, नीतिसम्बन्धी ग्रन्थ, अन्योक्ति, सुभाषितों से होती हुई संस्कृत भाषा में रचित वैदिक नीति की धारा प्रवाहित होती हुई पयस्विनी के समान गतिशील रही। ___ यद्यपि इन ग्रन्थों पर और इनमें वर्णित नीति पर जैन और बौद्ध परम्पराओं का काफी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, फिर भी विद्वानों ने इसे वैदिक नीति स्वीकार किया है, इसका प्रमुख कारण यह है कि अधिकांश ग्रन्थ और ग्रन्थकार रूप से वैदिक परम्परा से सम्बन्धित रहे है। १ आगन्द प्रवचन : भाग ८ से १२ में गौतन कुलक की सैकड़ों नीति सूक्तियां हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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