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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास | ३१
इस कथा के साथ वहाँ श्लोक दिया गया है___ अव्यापारेषु व्यापार यो नरः कर्तुमिच्छति ।
स एवं निधनं याति कीलोत्पाटीव वानरः ॥1 -(जो पुरुष बिना काम का काम (जिस कार्य से कोई प्रयोजन सिद्ध न हो, व्यर्थ का कार्य) करना चाहता है वह उसी प्रकार विनष्ट हो जाता है जिस प्रकार कीली निकालकर बन्दर मृत्यु को प्राप्त हो गया ।)
पंचतंत्र के कई रूपान्तर हुए किन्तु इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध नारायण पंडित का हितोपदेश है ।
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त संस्कृत भाषा में ऐसे ग्रन्थों की भी प्रचुर *रचना हई जिनका विषय नीति ही है और उनके नाम के साथ नीति शब्द भी प्रयुक्त हुआ है, यथा-शुक्रनीति, विदुरनीति, चाणक्यनीति आदि।।
ऐसे ग्रन्थों की संख्या लगभग १०० से अधिक है किन्तु इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कुछ ही ग्रन्थ हो सके हैं।
चाणक्य नीति और भर्तृहरि का नीतिशतक इन ग्रन्थों में प्रमुख हैं।
सोभप्रभ आचार्य का सूक्तिमुक्तावली तथा सोमदेव आचार्य का नीतिवाक्यामृत भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं ।
इनके अतिरिक्त द्याद्विवेदकृत नीतिमंजरी, वाचस्पतिमिश्रकृत नीति
१. पंचतन्त्र पृष्ठ १. २ (क) चाणक्य-नीति की छोटी-बड़ी प्रतियाँ-चाणक्यनीति, चाणक्य राजनीति,
चाणक्यनीति दर्पण, वृद्ध चाणक्य आदि प्राय: १७ रूपों में मिलती है। --दासगुप्ता : ए हिस्ट्री ऑव संस्कृत लिटरेचर, भाग १, १९४७, कलकत्ता। (ख) )i) चाणक्यनीति वास्तव में चन्द्रगुप्त के मन्त्री चाणक्य द्वारा रचित न होकर लोक-प्रचलित नीति-श्लोकों का संग्रह है। (ii) भर्तृहरि के नीति-शतक के सम्बन्ध में भी लोगों का यही अनुमान है ।
-डा० भोलानाथ तिवारी : हिन्दी नीतिकाव्य, पृष्ठ ३७, पाद टिप्पणी १ यह दोनों आचार्य जैन परम्परा से सम्बन्धित हैं। संस्कृत भाषा में नीति
सम्बन्धी स्वतन्त्र रचना करने के कारण यहाँ इनका उल्लेख किया गया है ।
-सम्पादक
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