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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास | २६
प्रमुख हैं। नीति के प्रसिद्ध ग्रन्थ बृहस्पति तथा शौनकीय नीतिसार गरुड़ पुराण के ही अंश हैं ।
पुराणों के नीति विषय-स्त्री, पंडित, सज्जन, नीच, धन, कृपण, भाग्य, सुख, दुःख, संसार, विद्या, धर्म, काल, सत्य, जीवन, मन, उद्यम, चिन्ता, शत्र, मित्र आदि हैं। कहीं-कहीं सीधी सरल भाषा में नीति का उपदेश है तो कहीं उदाहरणों से उसे पुष्ट भी किया गया है। फिर भी उदाहरण-पूष्टि का प्रयास कम ही है। यहां चार उदाहरण दिये जा रहे हैं
अधमाः कलिमिच्छन्ति, संधिमिच्छन्ति मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति, मानोहि महतां धनम् ॥ -(अधम (नीच) व्यक्ति कलह चाहते हैं, मध्यम व्यक्ति सन्धि की इच्छा करते हैं और उत्तम व्यक्ति मान चाहते हैं, क्योंकि मान ही सबसे बड़ा धन है।)
प्रस्तुत श्लोक में उत्तम, मध्यम और अधम व्यक्तियों की वृत्ति प्रवृत्ति तथा उनकी हृदयगत नीति पर यथार्थ प्रकाश डाला गया है ।
जलौका केवलं रक्तमाददाना तपस्विनी ।
प्रमदा सर्वदादत्त चित्त वित्त बलं सुखम् ॥3 - - जोंक तो केवल रक्त लेती है किन्तु स्त्री तो हृदय, धन, बल और सुख-सभी कुछ ले लेती है । भाव यह है- स्त्री जोंक से भी खतरनाक है ।
लोकबंधुषु मेघेषु विद्य त्वच्चल सौहृदाः ।
स्थैर्य न चक्र : कामिन्यः पुरुषेषु गुणिषु प्विव ॥ -(लोकोपकारी बादलों में भी बिजलियाँ चंचल रहती हैं (स्थिर नहीं रहतीं) उसी प्रकार.गुणी पुरुषों के सान्निध्य में भी चपल अनुराग वाली कामिनी स्त्रियाँ चंचल रहती हैं ।) __यहां मेघों में बिजली की चपलता के उदाहरण द्वारा स्त्री हृदय की चंचलता को दर्शाया गया है।
१. डा० भोलानाथ तिवारी : हिन्दी नीति काव्य, पुष्ठ ३४ २. Dr. Karmakar Puranik Words of Wisdom, p. 21 3. Ibid, p. 1 ४ श्रीमद्भागवत १०/२०/१७
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