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२८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन यही नीति भृर्तहरि की इस उक्ति में प्रतिपादित है -
सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति । (सभी गुण स्वर्ण (धन) के आश्रित रहते हैं ।)
प्रसिद्ध लोकोक्ति 'बिन टका टकटकायते' में भी इन्हीं संस्कृत सूक्तियों की छाया दृष्टिगोचर होती है।
संस्कृत महाकाव्यों में रामायण और महाभारत के अतिरिक्त बुद्धघोष के बुद्धचरित्र तथा सौन्दरानन्द, कालिदास के रघुवंश तथा कुमारसंभव, भारवि का किरातार्जुनीय, भट्टि का रावण वध (इसका दूसरा बहुप्रचलित नाम भट्टि काव्य है) माघ का शिशुपालवध आदि हैं। इनमें यत्र-तत्र नीति की अनेक सूक्तियां मिलती हैं । • कालिदास की यह सूक्ति लोकोक्ति के रूप में प्रसिद्ध है
एकोहि दोषो गुण सन्निपाते निमज्जतीन्दोः किरगेष्विवांकः ।
-(जैसे चन्द्रमा की ज्योति में उसका कलंक छिप जाता है वैसे ही गुणों के समूह में एक दोष भी छिप जाता है ।) वचन सम्बन्धी भारवि की यह सूक्ति भी उल्लेखनीय है
हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः ।। -(ऐसा वचन दुर्लभ है जो हितकारी तथा मन को अच्छा लगने वाला भी हो।) पौराणिक नीति
पुराणों की संख्या १८ मानी गई है। इनके रचयिता महाभारतकार महर्षि वेदव्यास माने जाते हैं। जिस प्रकार महाभारत में नीति के अनेकों श्लोक मिलते हैं, उसी प्रकार पुराणों में भी यत्र-तत्र नीति सम्बन्धी श्लोक और सूक्तियाँ भरी पड़ी हैं। डा० कर्माकर ने अपनी पुस्तक 'पुराणिक वर्ड स आफ विज्डम' में ही एक हजार श्लोक संकलित किये हैं।
___ अठारह पुराणों में ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, पद्मपुराण, शिवपुराण भागवतपुराण, अग्निपुराण, मार्कण्डेयपुराण, गरुडपुराण और ब्रह्मांड पुराण
१. उद्धृत, डा० भोलानाथ तिवारी : हिन्दी नीति काव्य, पुष्ठ ३२ २. वही, पृष्ठ ३३ ३. Dr. Karmakar : Puranik Words of Wisdom, Bombay, 1947
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