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नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास | २५
मनुस्मृति का यह श्लोक समाज में नारी की गरिमा प्रकट करता है । यह उच्च चरित्रवान नारी के लिए कहा गया है ।
राजा के चरित्र को मार्मिक मार्गदर्शन देने वाला एक श्लोक यहाँ उद्धृत करने योग्य है—
बकवच्चिन्तयेदर्थान्
सिंहवच्च पराक्रमेत् । वृक वच्चावलुम्प्येत शशवच्च विनिष्पतेत् ॥
( राजा का कर्त्तव्य है कि बगुले के समान शत्रु का धन लेने की चिन्ता करे, सिंह के समान पराक्रमी बने, भेड़िये के समान अवसर देखकर शत्रु को मारे और (विपरीत) अवसर होने पर खरगोश की तरह चुपचाप ( छिपकर ) निकल जाय ।)
प्रस्तुत श्लोक में राजा के कर्तव्यों के रूप में राजनीति — कूटनीति की कार्यकारी और प्रभावी चतुराई का वर्णन हुआ है ।
महाकाव्य साहित्य में नीति
महर्षि वाल्मीकिरचित रामायण सबसे प्राचीन महाकाव्य है । इसकी कथा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से सम्बन्धित है । अत: इसमें आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श सेवक आदि का सुन्दर वर्णन
।
है । साथ ही इसमें नीतियाँ भी यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं के श्लोक विषयानुसार भी रखे गये हैं ।
राजनीति की दृष्टि से सुन्दरकांड का ५२वाँ सर्ग, उत्तरकांड का ५३वाँ सर्ग, अरण्यकांड का ४०वाँ सर्ग तथा अयोध्याकांड का १०० वाँ सर्ग द्रष्टव्य है । सामान्य नीति का वर्णन उत्तरकांड के ५२ वें सर्ग तथा अयोध्या कांड के १४०वें सर्ग में मिलता है और स्त्री सम्बन्धी नीति के लिए अयोध्याकांड का १३ वां सर्ग देखा जा सकता है ।
अधिक विस्तार में न जाकर यहाँ हम एक दृष्टान्त देते हैं
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१. मनुस्मृति ७।१०६
२. वाल्मीकि रामायण ३|३८|२६
स्वभावतः आया कहीं-कहीं नीति
अकुर्वन्तोऽपि पापानि शुचयः पापसंश्रयात् ।
पर पापैविनश्यन्ति मत्स्या नाग हृदे यथा ॥ 2
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