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________________ २४ | जैन नीति शास्त्र : एक परिशीलन धर्मसूत्र सम्बन्धी कई ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। इनमें से बौधायन धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र और गौतम धर्मसूत्र प्रमुख हैं। __ इनमें विवाह के भेद, विवाह की नीति, ब्रह्मचारी, संन्यासी, ब्राह्मण, प्रभृति के कर्तव्य आदि बताये गये हैं । झूठी गवाही देने वाले को दण्ड' तथा अन्य प्रकार के पापकर्मियों के लिए भी दण्ड का विधान है। वाणी संयम आदि सद्व्यवहारों का भी उपदेश दिया गया है। विवाह के सम्बन्ध में स्वगोत्र की कन्या से विवाह का निषेध, अतिथि सत्कार, उपार्जित धन का व्यय (दान), कर-विधान , पर-स्त्री गमन', दण्ड आदि विषयों पर धर्मसूत्रों में काफी विवेचन किया गया है और ऐसे सिद्धान्त निश्चित किये गये हैं जो नीति से सम्बन्धित हैं । स्मृति साहित्य नीति की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। इनमें आचार, व्यवहार (विधि अथवा कानून) और प्रायश्चित्त का वर्णन है। यद्यपि स्मृतियों की संख्या १८ है किन्तु इनमें से ३ महत्त्वपूर्ण हैं- मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और नारदस्मृति । इनमें भी सर्वाधिक लोकप्रिय मनुस्मृति है । द्वितीय स्थान याज्ञवल्क्य स्मृति का है। .. स्मृतियों में चारों वर्गों के कर्तव्य, पारस्परिक व्यवहार का वर्णन है। साथ ही नीति और राजनीति के विषय में सुन्दर सूक्तियाँ भी हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्र स्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया ॥ -जिस कुल में स्त्रियों का पूजन (आदर-सम्मान-सत्कार) होता है, वहाँ देवताओं का निवास रहता है (देवता प्रसन्न रहते हैं) और जिस कुल में नारियों का सम्मान नहीं होता, वहाँ सभी कर्म निष्फल होते हैं। १ गौतम धर्मसूत्र २।४।२३ २ गौतम धर्मसूत्र ११७३ ३ आपस्तम्ब धर्मसूत्र १११५ ४ आपस्तम्ब धर्मसूत्र २।३।६।१४-१५,३।७।३,५,७,८,१०,१६ ५ आपस्तम्ब धर्मसूत्र ८।२०।१८,२० ६ आपस्तम्ब धर्मसूत्र १०।२६।११-१४ ७ आपस्तम्ब धर्मसूत्र १०।२७१७,८,१४,१५ ८. मनुस्मृति ३।५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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