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२६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
(जो पाप नहीं करते, वे भी पापीजनों के संसर्ग से नष्ट हो जाते हैं जैसे सर्पयुक्त जल-कुण्ड की मछलियाँ सर्पों के संसर्ग से (गरुड़ द्वारा ) नष्ट हो जाती हैं ।)
प्रस्तुत श्लोक में कुसंगति अथवा दुर्जनों की संगति का कटुफल बताया गया है । इसी प्रकार के श्लोक अन्य संस्कृत तथा हिन्दी के नीति काव्यों में प्राप्त होते हैं ।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर यह दर्शाया गया है कि व्यक्ति के वास्तविक रूप को साथ रहकर ही जाना जा सकता है ।
पम्पा सरोवर पर एक बगुले को धीरे-धीरे चलते देखकर श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण से बोले
.
पश्य लक्ष्मण ! पंपायां बकः परमधार्मिकः । दृष्ट्वा दृष्ट्वा पदम् धत्ते, जीवानां वधशंकया ||
- ( हे लक्ष्मण ! देख यह बगुला परमधार्मिक है । जीव न मर जाय, इस शंका से देख-देखकर धीरे-धीरे कदम रख रहा है ।)
इस पर जल में तैरती एक मछली ने कहा
: fक शस्यते रामः येनाहं निष्कुलीकृतः । सहचारी विजानीयात् चरित्रं सहचारिणाम् ॥
-- ( हे राम ! जिस बगुले को आप परम धार्मिक समझ रहे हैं उसका असली रूप मुझसे पूछिए । इसने मेरे कुल का ही नाश कर दिया है (मछलियों को गटक गया है) । सत्य तो यह है कि दूर से वास्तविकता का पता नहीं लगता, साथ रहने वाला ही अपने साथी के असली रूप को सही ढंग से जान पाता है 1 )
इस श्लोक में दंभी और ढोंगी चरित्र वाले, तन के उजले मन के काले, धर्म का आडम्बर ओढ़े हुए पाखंडियों के वास्तविक चरित्र की ओर व्यंग भी किया गया है तथा उनसे सावधान रहने की सामान्य नीति का भी निर्देश है ।
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इसी प्रकार के अनेक नीति श्लोक और सूक्तियां वाल्मीकि रामायण प्राप्त होते हैं ।
नीति की दृष्टि से महाभारत अत्यन्त समृद्ध महाकाव्य है । धौम्य - नीति, विदुरनीति, भीष्मनीति आदि नीति ग्रन्थ महाभारत के ही अंश हैं ।
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