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परिशिष्ट : बौद्ध साहित्य की सूक्तियां | ४८३
चंचल चित्त का दमन करना अच्छा है, दमन किया हुआ चित्त सुखकारी होता है। दुर्बुद्धि-सुबुद्धि
- थेरगाथा १ / १०६
मूर्ख (दुर्बुद्धि) सत्य का एक ही पहलू देखता है और पण्डित (सुबुद्धि) सत्य के सौ पहलुओं को देखता है ।
प्रज्ञा
प्रामाणिकता
एकंगडदस्सी दुम्मेधो, सतदस्सी च पण्डितो ।
प्रज्ञा (बुद्धि) की आँख सर्वश्रेष्ठ है।
पञ्ञाचक्खु अनुत्तरं ।
संवहारेण खो, महाराज, सोचेइयं वेदितव्वं
- उदान ६/२
हे महाराज ! व्यवहार करने पर ही मनुष्य की प्रामाणिकता का पता चलता है ।
मन
बढ़ती है।
वाणी विवेक
खुद्दा विक्का सुखुमा वितक्का, अनुग्गता मनसो उप्पिलावा ।
- उदान ४/१
अन्तर् (मन) में उठने वाले क्षुद्र और सूक्ष्म बितर्क ( विकल्प ) मन को उद्वेलित करते हैं ।
यश तथा कीर्ति
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- इतिवृत्तक ३ / १२
• निसम्मकारिनो राज, यसो किति च वड्डती ।
- सुत्तपिटक (जातक) ४/३३२/१२८ हे राजन् ! सोच समझकर कार्य करने वालों के ही यश तथा कीर्ति
मावोच फरुसं किंचि, वृत्ता परिवदेय्युं तं ।
- धम्मपद १० !५
ऐसा कठोर वचन मत बोलो, ताकि तुम्हें बोलकर फिर पछताना पड़े ।
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