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समस्याओं के समाधान में— जैन नीति का योगदान | ४३६
अतः स्वभाव से नीतिशास्त्र में आदत ( habit ) का प्रत्यय ग्रहण किया जाता है । आदत अथवा चरित्र का सफलता-असफलता में बहुत बड़ा भाग होता है। बुरी आदतों (bad habits) वाला व्यक्ति सर्वत्र बदनाम होता है और असफल हो जाता है जबकि अच्छी ( good ) आदतों वाला व्यक्ति लोकप्रिय, सुसंस्कृत के रूप में सर्वत्र सम्मान पाता है, सफलता उसके चरण चूमती है ।
(३) नियति — इसका अभिप्राय भवितव्यता अथवा होनी है । इसे भाग्य (fate) भी कहा जाता है । सामान्य मान्यता है कि जो घटना जिस रूप में घटित होनी है उसी रूप में घटित होगी ।
लेकिन जैन नीति के अनुसार सदाचरण द्वारा भाग्य को अनुकूल भी बनाया जा सकता है । वैसे सामान्य रूप से भाग्य की अनुकूलता भी सफलता में महत्वपूर्ण कारण हैं ।
(४) पुरुषार्थं - इसे सामान्य भाषा में उद्यम कहा जा सकता है । जैन नीति इस समवाय पर अधिक बल देती है । इसके अनुसार पुरुषार्थं के अभाव में सफलता नहीं मिलती। सफलता प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य है | (५) कर्म क्षय - धार्मिक दृष्टि से प्रत्येक अध्यात्मवादी व्यक्ति का लक्ष्य मोक्ष है और उसकी प्राप्ति के लिए पूर्वकृत सम्पूर्ण कर्मों का क्षय अनिवार्य है ।
लेकिन नीतिशास्त्र इस समवाय को साधन ( means) के रूप में स्वीकार करता है । साधनों का भी सफलता प्राप्ति में महत्व है ।
यदि विद्यार्थी के पास पैन न हो तो वह उत्तर पुस्तिका में प्रश्नों के उत्तर कैसे लिख सकेगा और कैसे उत्तीर्ण हो सकेगा ? इसी प्रकार प्रत्येक कार्य के लिए, कला और शिल्प के लिए आवश्यक साधन अनिवार्य हैं । साधन जितने सही होंगे सफलता भी उतनी ही शीघ्र प्राप्त होगी ।
इस प्रकार किसी योजना, कार्य में सफलता के लिए इन पांचों समवायों का मिलना आवश्यक 1
आत्म गौरव एवं स्वातंत्र्य
आत्मा का गौरव और उसकी स्वतन्त्रता की प्रतिष्ठापना जैन-नीति की एक विशिष्ट देन है । पाश्चात्य और यूनानी सभ्यताओं की बात ही दूर, भारतीय संस्कृति में आत्मा का स्वरूप निश्चित नहीं था ।
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