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४३८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
(५) जीत व्यवहार - जीत का अर्थ स्थिति, कल्प, मर्यादा और व्यवस्था है । सामान्य शब्दों में इसे परम्परा कह सकते हैं ।
जब किसी कार्य के निर्णायक स्वरूप उपरोक्त चारों आधारों में से कोई भी उपलब्ध न हो सके तो व्यक्ति को अपने कार्य की नैतिकता, अनैतकता का निर्णय नैतिक परम्परा के अनुसार कर लेना चाहिए, किन्तु वह परम्परा नैतिक हो, उसमें अनैतिकता का घालमेल न हो ।
इस प्रकार जैन-नीतिकारों ने नैतिक निर्णय के यह पाँच पुष्ट आधार मानव के समक्ष प्रस्तुत किये हैं । इनके आधार पर वह अपनी वृत्ति प्रवृत्तियों और क्रिया-कलापों की नैतिकता का निर्णय कर सकता है ।
कार्य - सफलता के उपाय
सफलता मानव मात्र की हार्दिक अभिलाषा है । वह कभी भी और किसी भी कार्य में विफल नहीं होना चाहता । सामान्य धारणा, आज के युग में यह बन गई है कि धार्मिक और नैतिक व्यक्ति सफल नहीं हो सकता, क्योंकि यह युग चतुराई और चालाकी का है । इस युग में चतुर, चालाक व्यक्ति ही सफल हो पाते हैं ।
लेकिन यह धारणा निर्मूल है। जैन नीतिकारों ने पांच समवाय बताये हैं । इनका सही उपयोग करने से प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त हो सकती है । वे समवाय हैं
(१) काल ( time ) - काल दार्शनिक और दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है । संसार के सार चलते हैं। किसी भी कार्य की सफलता में रहता है ।
व्यावहारिक दोनों ही सभी कार्य काल के अनुइसका बहुत बड़ा हाथ
यदि पाँच मिनट भी लेट हो गये तो ट्र ेन मिस हो गई, आपकी योजना धरी की धरी रह गई । काल अथवा समय का ध्यान न रहने से उम्मीदवार इन्टरव्यू न दे सका, परिणामस्वरूप उसका सलैक्शन न हो सका, कैरियर बनते-बनते बिगड़ गया । सुखी जीवन की योजना खटाई में पड़ गई, असफल हो गया ।
(२) स्वभाव -- इसका अभिप्राय है वस्तु का अपना स्वरूप | नीतिशत्र में इसका अभिप्राय व्यक्ति का अपना चरित्र होता है और जैसा कि मैकेंज ने कहा है—चरित्र आदतों का समूह होता है ।
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