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समस्याओं के समाधान में— जैन नीति का योगदान | ४३३
प्रो. मैत्र ने जैन संस्कृति पर एक आक्षेप किया है - कि जैन सूची में दूसरों से संबन्धित गुणों यथा - परोपकार, सहानुभूतिक सहायता ( आपत्ति में सहायता देना) और समाज सेवा को सम्मिलित नहीं किया गया है । इस से ज्ञात होता है कि जैनों का ध्येय समाज-सेवा की अपेक्षा स्वयं अपने सुधार ओर अधिक है । "
लेकिन श्री मंत्र का जैनधर्म-नीति के प्रति यह दृष्टिकोण भ्रान्त है । जैन नीति का लक्ष्य जितना स्वयं व्यक्ति के कल्याण के प्रति है, उस से कहीं अधिक पर - कल्याण के प्रति है ।
अब इस कथन के परिप्र ेक्ष्य में जैन-नीति द्वारा दिये गये समस्याओं के समाधान के विषय में विचार प्रस्तुत करेंगे ।
(१) व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक समस्याओं के समाधान - - व्यक्ति की प्रमुख व्यावहारिक समस्या, स्वास्थ्य है । इसके विषय में जैन-नीति में व्यावहारिक दृष्टिकोण से में कहा गया है
जैसे यात्रा का साधन रथ है, वैसे जीवन-यात्रा का साधन शरीर है कुशल सारथी सुखपूर्वक निर्विघ्न यात्रा के लिए रथ की देखभाल करता है, उसी प्रकार व्यक्ति जीवन यात्रा की निर्विघ्न संपन्नता के लिए शरीर की देखभाल करे, आहार- पानी आदि लेवे ।
जवणट्ठाए भुजिज्जा" जायमायाए भुंजिज्जा'
१. हमेशा ही भूख से कम खाए, ऊणोदरी करे, भूख से कम खाना महान तप है, इससे शरीर स्वस्थ रहता है, मन भी प्रसन्न रहता है ।
२. अप्पपिण्डासि - पेट से कम खाना शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का सूत्र है ।
३. अधिक गरिष्ठ, ( घी - वसायुक्त) मीठा, चटपटा, रसीला भोजन न
1 "The Jaina list does not include the other regarding virtues of benevolence, succour and social service. This shows that the Jaina virtues aim more at self-culture than at social service." Prof. Maitra : The Ethics of Hindus, p. 203.
२-३ प्रश्नव्याकरण सूत्र
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