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________________ ४३२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन लेकिन वहाँ भी एक शाश्वत धर्म के अनेक सम्प्रदाय बन गये । मुण्डे - मुण्डे मतिभिन्ना के अनुसार धर्म-संस्थापकों की जैसे बाढ़ ही आ गई । इनके भक्तों को धर्म का ऐसा जनून चढ़ा कि जिहाद' और Crusaders के युद्ध होने लगे, रक्त की नदियाँ बहाई जाने लगीं । मानवता संतप्त हो उठी । जिस सुख-शांतिपूर्ण जीवन और न्याय - नीतिपूर्ण पारस्परिक व्यवहार की कामना मानव ने की; वह धूल में मिल गई और बदले में मिला उसे समस्याओं का अम्बार | प्राचीन काल से ही मानव समस्याओं से घिरा हुआ है और आधुनिक युग - में तो समस्याएँ इतनी जटिल हो गई हैं कि प्रत्येक मानव ही समस्या मानव ( Problem man) बन गया है, पग-पग पर समस्याएँ हैं, लेकिन सुलझाव नहीं मिलता । यह बात नहीं कि मनीषी चिन्तकों ने, धर्म-संस्थापकों ने मानव की समस्याओं के समाधान न खोजे हों। उन्होंने अपनी-अपनी बुद्धि और देश की परिस्थिति अनुसार समाधान खोजे और मानव के समक्ष प्रस्तुत किये। लेकिन समस्याओं की संख्या और उनकी पेचीदगियों में गुणात्मक वृद्धि होती चली गई । मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा को । यहाँ देखना यह है कि जैन-नीति मानव की समस्याओं का क्या समाधान सुझाती है । मानव की समस्याओं को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - ( १ ) व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक ( २ ) आर्थिक और ( ३ ) राजनीतिक । १. जिहाद अरबी शब्द है और उसका अर्थ है धर्मयुद्ध और अंग्रेजी शब्द Crusade का अर्थ भी धर्मयुद्ध है । मध्यकालीन एशिया और यूरोप का इतिहास ईसाइयों के Crusade और मुसलमानों के जिहाद से भरा पड़ा है । धार्मिक जनून के कारण दोनों आपस में लड़ते रहे । भारत पर मुस्लिम आक्रमण भी जिहाद का ही एक अंग था । भारत भी में कमोवेश यही स्थिति रही । शुंग सम्राटों ने तो यहाँ तक घोषित कर दिया - एक श्रमण का सिर लाने वाले को एक सौ स्वर्ण मुद्रा का पुरस्कार दिया जायेगा | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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