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________________ ४३४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन करे। इससे चर्बी (कोलस्ट्रोल) बढ़ेगी, विकार भी बढ़ेंगे, इस प्रकार शरीर एवं मन दोनों ही बीमार हो जायेंगे। - इनके अतिरिक्त पारिवारिक समस्याओं के समुचित समाधान के लिए भी जननीति के व्यावहारिक सोपानों में व्यावहारिक सूत्र दिये गये हैं, यथा माता-पिता की सेवा करना, जिनके पालन-पोषण का दायित्व अपने ऊपर हो, उनका पालन पोषण करे। किसी की आजीविका बन्द न करे। ___ इन गुणों में तो अतिथि, दीन असहाय जनों और साधुओं की सेवा करने की प्रेरणा भी दी गई है। दान, सेवा और सहायता जैन श्रावक के प्रमुख कर्तव्य है। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के समुचित समाधान जैन-नीति में दिये गये हैं। (२) राजनीतिक समस्याओं का समाधान-मध्ययुग तक सामान्य जनता की कोई विशेष राजनीतिक समस्या नहीं थी। उस समय तक सामान्य जनता की यही अवधारणा थी कोउ नृप होय हमहिं का हानी? किन्तु प्रजातंत्र के प्रचार और राष्ट्रीय आन्दोलन के फलस्वरूप हुई जन-जागृति के कारण राजनीति ने अपना प्रसार जन साधारण तक विस्तृत कर दिया । गाँधीजी के शब्दों में राजनीति ने जनता को नागपाश के समान जकड़ लिया है। और इसका परिणाम यह हुआ कि राजनीतिक समस्याएँ जनता के समक्ष खड़ी हो गईं। जैन नीतिकारों ने संभवतः इन सब राजनीतिक परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगा लिया था, इसीलिए आचार्य हेमचन्द्र और हरिभद्र ने सामान्य जनता को नीति दी-कभी राजा की निन्दा न करे । जहाँ तक राज्य संचालन सम्बन्धी नीति का प्रश्न है तो जैन नीति १. उत्तराध्ययन १६. २ विस्तार के लिए देखिए-इसी पुस्तक का 'जैन नीति के व्यावहारिक सोपान' नामक अध्याय । 3 Politics has become the snake girdle of people. —Gandhi ४ आचार्य हेमचन्द्र : योगशास्त्र, प्रथम प्रकाश, श्लोक ४८ ___ अवर्णवादी न क्वापि, राजादिषु विशेषतः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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