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नीति की सापेक्षता और निरपेक्षता (RELATIVITY AND NON-RELATIVITY OF MORALITY)
नीति अथवा नैतिकता की सापेक्षता और निरपेक्षता मनीषियों के चिन्तन का शाश्वत विषय रही है।
निरपेक्षता का अभिप्राय है नीति के वे नियम जो शाश्वत हों, सार्वभौम हों, स्थायी हो और जिनमें देश-काल की परिस्थितियों, व्यक्ति की स्थितियों आदि किसी भी कारण से कोई भी किसी भी प्रकार का किंचित् भी परिवर्तन न हो।
इसके विपरीत सापेक्षता का अर्थ ऐसे नीति नियमों से है जो व्यक्ति, परिस्थिति, युग और देश-काल के अनुसार परिवर्तित होते हैं।
भारतीय और संसार के अधिकांश नीति-मनीषी नैतिक नियमों को सापेक्ष मानते हैं। सिर्फ काण्ट ही ऐसा दार्शनिक है जो नीति और नैतिक नियमों को निरपेक्ष मानता है। वह नैतिक नियमों को निरपेक्ष आदेश (Categorical Imperatives) कहता है, जिनमें अपवादों को कोई स्थान ही नहीं है । वह कहता है- 'तुम केवल उसी सिद्धान्त का आचरण करो जिसे तुम इसी समय सार्वभौम बन सको।'
___ इसी कारण काण्ट के सिद्धान्त को कठोरतावाद (Rigorism) कहा गया है।
उसके अतिरिक्त हॉब्स, मिल, ब्रडले आदि विचारक नीति को सापेक्ष मानते हैं।
भारतीय चिन्तनधाराओं में वैदिक और बौद्ध विचारणा नैतिक नियमों को सापेक्ष स्वीकार करती है ।
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