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अधिकार-कर्तव्य और दण्ड एवं अपराध | ४१५ इसके विपरीत जो व्यक्ति कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड का भागी होना पड़ता है; धिक्कार-तिरस्कार ही उसे समाज देता है और राज्य तथा समाज उसे दण्ड देते हैं।
दण्ड क्या है ?
(What is Punishment) दण्ड की विवेचना करने से पहले, यह समझ लेना आवश्यक है कि 'दण्ड है क्या ?' भारत में दण्ड को धर्म का ही एक अंग माना गया है। वैदिक परम्परा में यमराज (मृत्यु के देवता-God of Death) को भी धर्मराज कहा गया है और उन्हें यथातथ्य न्यायकर्ता बताया गया है। यह प्रसिद्ध है कि वे पापी को उचित दण्ड देते हैं, बिल्कुल भी रियायत नहीं करते और उनकी न्याय-व्यवस्था तथा उनका आदेश अटल है। उसमें कोई फेरबदल नहीं हो सकता।
राजनीति के चार भेदों-साम, दाम, दण्ड और भेद में भी दण्ड एक प्रत्यय है और इसे उचित माना गया है।
इसी प्रकार न्याय-व्यवस्था में दण्ड अनिवार्य माना गया है, न्यायाधीश विभिन्न अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के दण्ड देते हैं और उनके द्वारा दिया गया दण्ड न्यायोचित माना जाता है।
___ न्यायालयों द्वारा निर्धारित दण्ड राज्य और समाज-दोनों ही की सुव्यवस्था के लिए अनिवार्य है । आर्थिक सुरक्षा के लिए भी दण्ड का प्रावधान है।
नीतिशास्त्र भी इसी परिप्रेक्ष्य में दण्ड को स्वीकृति देता है।
समाज के सन्दर्भ श्री वाल्टर रैकलैस ने दण्ड की परिभाषा इस प्रकार दी है
"दण्ड वह प्रतिशोध है जो कामनवेल्थ अपराधी से लेता है।''
इस परिभाषा में प्रतिशोध शब्द खटकने वाला है। यह तो एक प्रकार से बदला चुकाना हआ जो कि नैतिक अथवा समझदार व्यक्ति के लिए उचित नहीं है । इससे तो न्याय अथवा न्यायाधीश की गरिमा भी नहीं रहती।
अतः यह परिभाषा नीतिशास्त्र को मान्य नहीं है ।
1 It is redress that the commonwealth takes against an offending member.
Walter Reckless
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