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४१६ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
इस परिभाषा से श्रेष्ठ परिभाषा सेठना की है। वह कहता है"दण्ड एक प्रकार का सामाजिक नियन्त्रण है।''
सामाजिक नियन्त्रण यदि नैतिकता के प्रसार के लिए है तो यह परिभाषा नीतिशास्त्र को मान्य हो सकती है।
जैन आचार्यों ने दण्ड शब्द पर कई दृष्टियों से चिन्तन किया है। दण्ड-छोटी लाठी को कहते हैं जो हाथ में रखी जाती है--यह अपराध आदि के नियन्त्रण, दुष्टों को भयभीत करने में प्रयुक्त होती है। इसी अर्थ में दण्ड शब्द का प्रयोग हुआ है । जिससे-दुष्टों का निग्रह, अनुशासन एवं अपराधी का उत्पीड़न किया जाय, वह है दण्ड । कहा है
वधश्चैव परिक्लेशो धनस्य हरणं तथा ।
इति दण्ड विधानज्ञ दण्डोऽपि त्रिविधः स्मृतः। ___ मारना-पीटना, क्लेश पहुँचाना तथा धन आदि की अदायगी के रूप में अर्थभार डालना-यों तीन प्रकार दण्ड कहा है।
एक परिभाषा के अनुसार -"दण्डनं दण्ड: अपराधीनामनुशासनम्" -अपराधियों पर अनुशासन या नियंत्रण रखना दण्ड है ।।
सेठना की उक्त परिभाषा भी इसी का अनुसरण करती है ।
सही स्थिति यह है कि नीतिशास्त्र की विभिन्न परिभाषाएँ दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों से प्रभावित हैं। जो मनीषी दण्ड से जिस सिद्धान्त का समर्थक रहा, उसने दण्ड की वैसी ही परिभाषा निर्धारित कर दी। जहाँ पर जिस कार्य के लिए उसका उपयोग हुआ, वही उसका भावार्थ बन गया।
अतः दण्ड की परिभाषाओं अथवा स्वरूप को दण्ड के सिद्धान्तों के सन्दर्भ में ही समझा जाना चाहिए ।
दण्ड के सिद्धान्त
(Theories of Punishment) मनीषियों ने दण्ड के सिद्धान्तों का वर्गीकरण तीन रूपों में किया है-(१) बदले का सिद्धान्त (२) निवर्तनात्मक सिद्धान्त और (३) सुधारात्मक सिद्धान्त ।
| Punishment is some sort of social censure.
-M. J. Sethna : Society and Criminals, p. 205 २ देखें अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग ४, पृ. २४२१ पर प्रसंगानुसार दण्ड के
११ अर्थ हैं।
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