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४०६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
सम्पत्ति को बरबाद करना अपनी सम्पत्ति का दुरुपयोग है तथा राष्ट्र, समाज आदि की संपत्ति को तोड़ना, फोड़ना, जिस हेतु सम्पत्ति दी गई है उसे अन्य कार्यों में खर्च देना दूसरों की संपत्ति का दुरुपयोग है ।
नागरिक शास्त्र में ऐसे व्यक्ति को बुरा नागरिक कहा गया है, तो समाज विज्ञान (Sociology) और राजनीति विज्ञान (Political Science) में असामाजिक तत्व तथा नीतिशास्त्र में अनैतिक अथवा दुर्नैतिक व्यक्ति की उसे संज्ञा दी है।
जैन दृष्टि इस विषय में बिलकुल स्पष्ट है। मार्गानुसारी के बोलों में स्पष्ट कहा गया है कि व्यक्ति को निन्दनीय आचरण नहीं करना चाहिए और संपत्ति का अपहरण तथा दुरुपयोग करना एवं उसका सम्मान न करना निंदनीय आचरण ही है । और चोरी करना तो सर्वथा ही अनैतिक है, पाप है।
(४) सामाजिक व्यवस्था का सम्मान (Respect of Social order)
समाज की सुव्यवस्था हेतु और उसके सुसंचालन के लिए समाज ने जिन संस्थाओं को मान्यता दी है, उनका सम्मान करना व्यक्ति का नैतिक कर्तव्य है। उदाहरण के लिए धार्मिक संस्थाओं, समाजकल्याणकारी संस्थाओं और ऐसे रीति-रिवाज जिनसे समाज को गति मिलती है, व्यक्ति की उन्नति होती है, उनका सम्मान प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए । इन संस्थाओं में तोड़-फोड़ करना, उनका विरोध करना अथवा नष्ट करना अनैतिकता है।
इसका अभिप्राय यह भी है कि जो संस्थाएं अथवा रूढ़ियाँ देश अथवा समाज के लिए हानिकारक हों, जिनसे परिवार में बिखराव होता हो, उनका विरोध करे और उन्मूलन का प्रयास करे । ऐसी कुप्रथाएँ आज के भारतीय समाज में दहेज आदि हैं ।
इसको जैन नीति के व्यावहारिक बिन्दुओं में 'अदेशकालयोश्चर्या' शब्द से कहा गया है, जिसका अभिप्राय है व्यक्ति को देश और काल के विपरीत आचरण नहीं करना चाहिए ।
१. अप्रवृत्तश्च गहिते।
-योगशास्त्र १/५०
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