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३६४ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नैतिक अन्तरात्मवाद के प्रमुख प्रवर्तक जोजेफ बटलर हैं। इसने कहा है कि मानव प्रकृति के अनुरूप जो हैं, वे सद्गुण हैं और विपरीत दुर्गण हैं। इसने मानव प्रकृति के चार तत्त्व बताये हैं- (१) वासना (passion) (२) स्वप्रेम (self-love) (३) परहित (benevolence) (४) अन्तरात्मा (conscience)।
वासना के अन्तर्गत बटलर भावना (affect.on) और क्षुधा (appetites) आदि प्रवृत्तियों को भी सम्मिलित कर लेता है। वासनाओं को वह अन्धी (rash) कहता है।
स्वप्रेम उसक अनुसार वह मानवीय प्रवृत्ति है जिसके कारण मानव जीवन भर सुख की अभिलाषा करता है । परहित का अभिप्राय दूसरों के लिए अधिकाधिक सुख का प्रयास करना है । यह सोच-समझकर की जाने वाली वृत्ति है।
अन्तरात्मा को बटलर ने बुद्धि का स्थायीभाव (sentiment of reason) या हृदय का प्रत्यक्ष अनुभाव (perception of heart) बताया है और इसको निन्दा प्रशंसा करने वाली क्षमता (faculty), नैतिक बुद्धि (moral reason) नैतिक इन्द्रिय (moral sense) और ईश्वरीय बुद्धि (divine reason) के रूप में वर्णित किया है।
__बटलर ने अन्तरात्मा को औचित्य-अनौचित्य, शुभत्व-अशुभत्व का ज्ञान करने वाली और चिन्तन-मनन करने वाली शक्ति के रूप में स्वीकार किया है।
___ जैनदर्शन ने भी आठ प्रकार की आत्मा मानी हैं। उनमें से कषाय आत्मा, ज्ञानात्मा, उपयोग आत्मा, योगात्मा और चारित्रात्मा नीति की दृष्टि से मननीय है। बटलर ने जो मानव प्रकृति के चार प्रकार के तत्व माने हैं, उनमें से कषायात्मा में वासना तत्व और स्वप्रेम तत्व का समावेश हो जाता है तथा ज्ञानात्मा में शेष दो तत्वों का । उपयोग के शुभ, अशुभ, शुद्ध तीन भेद हैं । अतः उपयोग आत्मा में बटलर के नैतिक अन्तरात्मवाद का संपूर्ण सिद्धान्त समा जाता है।
मार्टिन्यू का सहजज्ञानवाद- बटलर के सिद्धान्त को मार्टिन्यू ने सूक्ष्मतम सीमा तक आगे बढ़ाया और उसमें मनोवैज्ञानिकता का समावेश किया । मार्टिन्यू (Martineau) ने अपने नैतिक सिद्धान्त को इडियो साइकोलोजिकल (Idio psychological) कहा । यह सिद्धान्त पर्याप्त सीमा तक नैतिक इन्द्रियवाद के समान है । किन्तु इसकी विशेषता यह है कि मार्टिन्यू सर्वप्रथम कर्म की प्रेरणाओं का मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत करता है
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