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नैतिक चरम | ३४६
कहते हैं, श्लेष्म कफ का नाम है । भाव यह है कि उत्सर्ग अर्थात् फेंकने भोग्य वस्तु को देखभाल कर ऐसी जगह फेंकना चाहिए जिससे न तो किसी जन्तु की हानि ही हो और न (मानव आदि) किसी को असुविधा ही हो ।
तत्वार्थ सूत्र में इस समिति का नाम उत्सर्ग समिति' दिया गया है। इसका व्यावहारिक एवं नैतिक महत्व स्पष्ट है।
गुप्ति गुप्ति का अभिप्राय है---मन-वचन-काय की अकुशल वृत्तियों को रोकना, उनका निग्रह करना।
अकुशल प्रवृत्ति का अभिप्राय है-संरंभ, समारम्भ, आरम्भ की ओर मन-वचन-काय की प्रवृत्ति । अकुशल को ही जैन दर्शन में असम्यक् कहा गया है। इन असम्यक प्रवत्तियों का निग्रह करना और सम्यक् प्रवृत्ति में योगों को लगाना गुप्ति है ।
गुप्ति शब्द से दो अभिप्राय व्यंजित होते हैं-(१) गोपन करना अर्थात् बाह्य जगत की ओर से खींचकर, निरोध करके योग-व्यापार को दर्शन-ज्ञान-चारित्र आदि आत्मभावों में स्थिर करना और गोपन का दूसरा अभिप्राय है, अशुभ व्यापारों-वृत्तियों से रक्षा-सुरक्षा करना। ___इनमें से अकुशल प्रवृत्तियों का निरोध निवृत्ति रूप और कुशल प्रवृत्तियों में प्रवर्तमानता प्रवृत्तिरूप है ।
मन के विचारों की प्रवृत्ति १ सत्य २ असत्य ३ मिश्र--सत्य-असत्य मिश्रित और ४ अनुभय-न सत्य, न असत्य अपितु लोक व्यवहार-इन चार रूपों में होती है। यही ४ भेद वचन-प्रवृत्ति के भी हैं। इसी कारण मनोगुप्ति और वचनगुप्ति के भी चार-भेद होते हैं।
(१) मनोगुप्ति-संरंभ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त हुए मन के व्यापार को रोकना मनोगुप्ति है।'
१ तत्वार्थ सूत्र ६, ५ २ सम्यग्योगनि ग्रहो गुप्तिः ।
तत्वार्थ सूत्र ६, ४ ३ गोपनं गुप्तिः- मनः प्रभृतीनां कुशलाननं प्रवर्तनमकुशलानाम् च निवर्तनमिति""।
-स्थानांग वृत्ति पृ. १०५, १०६ ४ उत्तराध्ययन सूत्र २४/२१
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