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________________ नैतिक चरम | ३४७ समिति समिति ५ हैं – (१) ईर्या समिति (२) भाषा समिति (३) एषणा समिति (४) आदान भण्डमात्र निक्षेपण समिति (५) उच्चार-प्रस्रवणश्लेष्म-सिंघाणजल्ल परिष्ठापनिका समिति । (१) ईर्या समिति-ईर्या का अर्थ गमन है, अतः गमन विषयक सद्प्रवृत्ति को ईर्या समिति कहा गया है। इसका अभिप्राय है-चलते समय इधर-उधर दृष्टि न रखकर मार्ग पर ही रखनी चाहिए और हाथ चार आगे देखकर चलना चाहिए, जिससे किसी क्षुद्र जन्तु की प्राण-हानि न हो जाय । नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण ईर्यासमिति को और भी विशद रूप से स्वीकार करता है जीव-रक्षा की भावना तो है ही, स्वयं अपनी भी रक्षा होती है-पैर में चोट नहीं लगतो, पाँव गन्दगी से नहीं भरता, कांटा कंकर नहीं लगता । सामान्य नागरिक आचार के दृष्टिकोण से भी इसका बहुत महत्व है । आज के युग में लोग चलने में बहुत लापरवाह हो गये हैं, तभी तो इतने एक्सीडेंट हो रहे हैं। अतः ईर्यासमिति अथवा गमनागमन की सावधानी प्रत्येक दृष्टिकोण से उपयोगी है, लाभप्रद है और सभी के लिए पालनीय है । यातायात के नियम Traffic Rules स्वयं इसमें सध जाते है। ... (२) भाषा समिति- भाषा अथवा वाणी का बहुत महत्व है। क्रोध, मान, कपट, लोभ, हास्य, भय, मुखरता आदि दोषों से रहित, अवसर के अनुकूल और परिमित भाषा बोलना भाषा समिति है। दूसरे शब्दों में कटु भाषा, व्यंगोक्ति आदि मर्मकारी तथा दूसरे को पीड़ित करने वाली भाषा नहीं बोलनी चाहिए । भाषा विवेक ही भाषा समिति है। भाषा, वाणी या वचन, नीतिशास्त्र का प्रमुख विवेच्य विषय है । अनेक सन्त कवियों और नीतिशास्त्रियों ने इस पर बहुत लिखा है, अनेक -तत्वार्थ सूत्र ६,५ (ख) ज्ञानार्णव १८/५-७ १. ईर्याभाषेषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः । २. (क) उत्तराध्ययन सत्र २४, ४ (ग) मूलाराधना ६/११६१ ३. (क) उत्तराध्ययन सूत्र २४/६-१० (ख) योगशास्त्र १/३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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