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३३८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
आभ्यन्तर तप के भेद-७ प्रायश्चित्त ८ विनय ह वैयावत्य १० स्वाध्याय ११ ध्यान और १२ व्यूत्सर्ग।।
(१) अनशन-अनशन का अभिप्राय है -आहार न करना । आहार के चार प्रकार हैं- १ अशन (अन्न) २ पान (जल, पेय पदार्थ आदि) ३ खादिम (मेवा, मिष्ठान्न आदि) ४ स्वादिम (मुख को सूवासित करने वाले इलायची आदि पदार्थ)। इन चारों प्रकार के भोज्य पदार्थ अथवा 'पान' के अतिरिक्त तीन प्रकार के भोज्य पदार्थों का त्याग अनशन है।
(२) ऊनोदरी-इसके अन्य नाम अवमौदरिका और अवमौदर्य हैं। ऊनोदरी का अभिप्राय है-भूख से कम खाना । इसमें इच्छा नियमन किया जाता है।
... (३) वृत्तिपरिसंख्यान- इसको अंग ग्रथों में भिक्षाचर्या कहा गया है। इसका एक नाम वृत्तिसंक्षेप भी है। इसमें अपनी वृत्तियों को भोजन, वस्त्र आदि आवश्यक वस्तुओं को उत्तरोत्तर न्यून किया जाता है।
वत्तिसंक्षेप और वत्तिपरिसंख्यान शब्दों का नीतिशास्त्र में अधिक महत्व है क्योंकि अपनी वृत्तियों को व्यक्ति जितना नियमित करता जाता है, उतने उसके दृढ़ कदम नैतिक उत्कर्ष व चरम की ओर बढ़ते जाते हैं।
(४) रस-परित्याग-इस तप में रसों का त्याग करके अस्वाद वृत्ति अपनाई जाती है, स्वादलोलुपता से विरक्ति ही इस तप का ध्येय है।
(ख) अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यान रसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेपाः बाह्यं तपः।
-तत्वार्थ सूत्र ६, १६ [विशेष-तत्वार्थ सूत्र में भिक्षाचर्या के स्थान पर वृत्तिपरिसंख्यान दिया गया है । यह शब्द नीति की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है; क्योंकि भिक्षाचर्या केवल श्रमण तक ही सीमित है, जबकि वृत्तिपरिसंख्यान तप का पालन श्रमण और श्रावक-यहां तक कि नैतिक जीवनचर्या अपनाने वाला सद्गृहस्थ सभी कर सकते हैं। १ (क) अब्भिन्तरए तवे छविहे पण्णते तं जहापायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सगो।
-- भगवती प्रा. २५, उ० ७, सूत्र २१७ (ख) प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ।
-तत्वार्थ सूत्र ६, २०
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