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अजीव तत्व १६८, अन्य तत्व १९६, आस्रव, बन्ध और पाप हेय क्यों ? २००, संवर निर्जरा और पुण्य उपादेय क्यों ? २०१ २. सम्यग्दर्शन का स्वरूप और नैतिक जीवन पर उसका प्रभाव २०४-२२१
सम्यक्त्व की उत्पत्ति २०४, सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण २०४, रुचि की अपेक्षा दसविध वर्गीकरण २०६, सम्यक्त्व का पंचविध वर्गीकरण २०७, सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण २०८, सम्यक्त्व के पाँच लक्षण २०६, सम्यग्दर्शन के आठ अंग २१२, सम्यक्त्व के अतिचार २१८, उपसंहार २१६ । ३. नैतिक आरोहण का प्रथम चरण : व्यसनमुक्त जीवन २२२-२३८ ____ व्यसन क्या है २२३, व्यसनों के सात प्रकार २२४, जुआ २२४ मांसाहार २२६, मद्यपान २२७, वेश्यागमन २३०, शिकार २३१, चोरी २३२, चोरी के विभिन्न रूप २३२, चोरी के कारण २३३, परस्त्री सेवन २३४, परस्त्रीसेवन के दोष और हानियाँ २२६, परस्त्री सेवन के कारण २३७, उपसंहार २३७ । ४. जैन दृष्टि सम्मत-व्यावहारिक नीति के सोपान २३९-२६६ (१) न्याय सम्पन्न विभव २४१, (२) शिष्टाचार प्रशंसकता २४१ (३) विवाह सम्बन्ध विवेक २४१, (४) पापभीरुता २४३, (५) देश प्रसिद्ध आचार-पालनता २४४, (६) अनिन्दकत्व २४४, (७-८) आदर्श घर २४६, (६) सदाचारी व्यक्तियों की संगति २४७, (१०) माता-पिता की सेवा २४८, (११) उपद्रवग्रस्त स्थान का त्याग २४८, (१२) निन्दनीय प्रवृत्ति का त्याग २४६, (१३) आय-व्यय का सन्तुलन २४६, (१४) वित्तीय स्थिति के अनुसार, वेशभूषा २५० (१५) धर्मश्रवण २५०, (१६-१७) आहार-विवेक २५० (१८) धर्ममर्यादित अर्थ-कामसेवन २५२, (१६) अतिथि-सत्कार २५३ (२०२१) अभिनिवेशिता और गुणानुराग २५३, (२२) देश-कालोचित आचरण २५४, (२३) सामर्थ्यासामर्थ्य की पहचान २५४, (२४) व्रती और ज्ञानीजनों की सेवा २५५, (२५) उत्तरदायित्व निभाना २५५, (२६) दीर्घदर्शिता २५६, (२७-२६) विशेषज्ञता, कृतज्ञता, लोकप्रियता २५७, (३०-३३) सलज्जता, सदयता, सौम्यता और परोपकार २५९, (३४-३५) विजय की ओर २६२, अन्य नैतिक गुण २६७ ।
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