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________________ नैतिक उत्कर्ष | ३०६ सांस्कृतिक विषयों पर प्रवचन देने का व्यवसाय, धार्मिक एवं नैतिक पुस्तकें लिखने का व्यवसाय, आदि । ये भी आज के युग में व्यवसाय, अथवा जीविका उपार्जन के साधन हैं। इनमें से धार्मिक, समाज-सुधारक, नैतिक शिक्षाप्रद प्रवचन एवं पुस्तक-लेखन के अतिरिक्त अन्य सभी ऐसे व्यवसाय जिनमें तनिक भी हिंसा की संभावना हो, इस प्रतिमा का धारी श्रावक छोड़ देता है। किन्तु वह अभी परिग्रह का त्याग नहीं करता, संपत्ति अथवा संपत्ति के कुछ अंश पर स्वामित्व रखता है, इसका कारण यह है कि धार्मिक और समाज सेवा के कार्यों में, मानवता के हित के लिए वह उस संपत्ति का उपभोग कर सकता है। ___ सामाजिक और नैतिक दृष्टि से उसकी यह प्रवृत्ति महत्व रखती है, कारण यह है कि संभवतः पुत्र आदि उसकी भावना पूरी होने में सहयोगी न बनें। (६) प्रष्य-परित्याग प्रतिमा-आठवीं प्रतिमा में श्रावक स्वयं आरंभ का त्याग करता है, किन्तु इस प्रतिमा में वह दूसरों से भी आरम्भ कराने का त्याग कर देता है। वह किसी भी वाहन यथा--वायुयान, जलयान, कार, स्कूटर आदि का न स्वयं प्रयोग करता है, न इनके प्रयोग के लिए किसी अन्य से भी कहता ही है। गृह-निर्माण, पचन-पाचन (भोजन पकाना-पकवाना), विवाह आदि जिन कार्यों में थोड़ा भी आरम्भ होता है, उन सभी कार्यों को वह न स्वयं करता है, न दूसरों से ही करवाता है । यहाँ तक कि वह स्वजनों, परिजनों अनुचरों पर भी अनुशासन नहीं करता। उसके परिग्रह की वृत्ति और भी कम हो जाती है। वाहन-त्याग में मूल रूप से अहिंसा की भावना है। वाहनों से छोटे जीव तो मरते ही हैं, किन्तु कभी-कभी एक्सीडेंट भी हो जाते हैं, जिससे पंचेन्द्रिय पशु तथा अनेक मानवों का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। मानव या पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी आदि को चोट पहुँचाना तो पश्चिमी नीतिविज्ञानी भी अनैतिक कार्य मानते हैं और आज तो विज्ञान ने भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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