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________________ नैतिक उत्कर्ष | ३०१ जीवन की शिक्षा देने वाले हैं । इसीलिए वह इनका बार-बार आचरण करता है। नीति के शब्दों में शिक्षाव्रत नैतिक उत्कर्ष से व्यक्ति को नैतिक चरम की ओर ले जाने वाले सोपान हैं। यह चार हैं-(१) सामायिक (२) देशावकाशिक (३) प्रोषधोपवास और (४) अतिथि संविभाग । सामायिक ___ सामायिक एक आध्यात्मिक साधना है। इसमें समत्व भाव की साधना की जाती है । मन को, वचन को और शरीर को अनुशासित किया जाता है, धर्मध्यान में रमाया जाता है। __यद्यपि सद्गृहस्थ समभाव की साधना केवल ४८ मिनट तक करता है; किन्तु उसके जीवन व्यवहार पर उस साधना का बहुत गहरा असर होता है । वह शुभत्व की ओर अग्रसरित होता है । शुभ एक नैतिक प्रत्यय है। सामायिक साधना से व्यक्ति के मनवचन-काय इतने अनुशासित हो जाते हैं, उसका स्वयं के संवेगों पर इतना नियंत्रण हो जाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी उसका मानसिक संतुलन कायम रहता है, अन्य व्यक्ति अपमानजनक व्यवहार कर दे तो भी वह आवेश में नहीं आता, वह अपने चित्त की शांति को भंग नहीं करता, शुभ भावों से ही स्वयं को ओत-प्रोत रखता है और यही प्रयत्न करता है कि सामने वाला भी शांत हो जाय, अपने हृदय के आवेश को नियन्त्रित कर ले। यह स्थिति समाज में शांति और नैतिक वातावरण निर्मित होने में बहत सहयोगी होती है। जितना-जितना इसका प्रसार होता है, उतनाउतना समाज में सुख का वातावरण बनता है। सामायिक साधक जब 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की भावना मन में भाता है तो उसका विचार-प्रवाह तरंगायित होकर दूर-सुदूर क्षेत्रों तक प्रसरणशील बनकर अन्य प्राणियों के मन-मस्तिष्क में भी सुख की उमियाँ उत्पन्न कर देता है। यही सामायिक का नीतिशास्त्रीय महत्व है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004083
Book TitleJain Nitishastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1988
Total Pages556
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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